मुक्तक/दोहा

दोहे – रोटी

रोटी की महिमा बड़ी,रोटी रखे प्रताप ।
 रोटी से ही बल मिले,रोटी से ही ताप ।।
 रोटी सचमुच है ख़ुदा,रोटी है संसार ।
रोटी से आनंद है,रोटी से ही सार ।।
 रोटी से हर पुण्य है,रोटी से सत्कर्म ।
रोटी तो ईमान है,रोटी तो है धर्म ।।
 रोटी इक तस्वीर है,रोटी है तक़दीर ।
 रोटी की ख़ातिर झुके,महाबली औ’ वीर ।।
 रोटी में संदेश है,रोटी मेंअभिप्राय ।
 पेट बड़ा पापी ‘शरद’,देता है पगलाय।।
रोटी ने संसार को, दिये अनोखे रंग ।
रोटी के कारण हुईं ,यहाँ अनगिनत जंग ।।
रोटी इक संघर्ष है, रोटी इक उत्कर्ष।
रोटी इक तासीर है,रोटी है इक हर्ष ।।
रोटी है उपलब्धि इक,रोटी है उत्थान।
रोटी मंगलगान है,रोटी है जयगान।।
रोटी यदि श्रम से मिले,तो सचमुच वरदान।
चोरी की रोटी यहाँ,लाये बस अवसान।।
रोटी में ही देव हैं,रोटी में भगवान।
भूखे को दो रोटियाँ,तो मिलता यशगान।।
— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]