कहानी

परवरिश

आज सुबह जैसे ही सोकर उठा वृद्धाश्रम से फोन आया। जो सूचना मिली उसे सुनकर  मैं रोना चाहता था लेकिन रो नहीं पाया। बिना किसी को कुछ बताए मैं घर से निकल गया चाची को अंतिम प्रणाम करने।
अंतिम संस्कार के बाद उनके कमरे में अकेला बैठा रहा कुछ देर। चाची से जुड़ी यादें दिमाग पर छाई हुई थी।
मेरे पड़ोस में रहने वाला एक उच्च मध्यम वर्गीय संपन्न परिवार। चाचाजी की दो बड़ी दुकानें थी शहर में। खूब चलती थी। दो ही बेटे थे। शहर के नामी विद्यालय में पढ़ते थे। पड़ोस के बच्चों से उनकी बातचीत ना के बराबर ही थी। चाचा चाची सबसे प्रेमभाव रखते थे लेकिन घनिष्ठता किसी से भी नहीं थी।
बच्चों को बेहतर परवरिश देना ही उनके जीवन का उद्देश्य था। चाची एकदम घरेलू महिला थी। घर में नौकर के होते हुए भी वो घर के सभी काम अपने हाथ से करती थी। हमारा परिवार एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार था।  पिताजी की छोटी सी नौकरी ही आमदनी का एकमात्र स्रोत थी। मां एक सुघड़ गृहिणी की तरह सब व्यवस्थित कर लेती थी।  ज़रूरत की सभी चीजें हम सब भाई बहनों को उपलब्ध हो जाती थी। कपड़े, किताबें, खिलौने बड़े भाई से लेकर छोटी बहन तक सब इस्तेमाल करते थे। चाची के दोनों बेटों के बारे में जानने और उनसे बात करने की कई बार इच्छा होती थी परंतु वे दोनों बाहर नज़र ही नहीं आते थे। याद नहीं पड़ता कि कभी आमने सामने उन दोनों से कोई बात हुई होगी। बड़े भाई की शादी से पहले पिताजी ने लोन लेकर एक बड़ा मकान खरीद लिया था। हम दूसरी कॉलोनी में चले गए और चाचा चाची से संपर्क लगभग टूट ही गया।
“भैया, आज ही शाम तक कोई आ जायेगा इस कमरे में। आप चाहो तो माताजी का सामान उठा लो। कमरे की सफाई करनी है।” वृद्धाश्रम का ही एक कर्मचारी खड़ा था मेरे सामने। ,”उठिए, भाई साहेब।” उसने फिर कहा। मैं उठ गया। वह झाड़ू लगाते लगाते बोल रहा था,” यहां तो यह सब हर तीसरे दिन का काम है। बूढ़े लोग हैं। भगवान के पास नहीं जायेंगे तो कहां जायेंगे ? आप खुद को संभालिए। मेरी मानो तो प्रबंधक से बात करके उनका सामान ले जाओ।” मुझे सलाह देकर वह फिर से अपने काम में लग गया।
प्रबंधक की अनुमति से चाची का छोटा सा बक्सा खोला गया। दो तीन सूती धोती, एक शाल, कुछ कागज़ और एक पोटली। पोटली में पूरे 1100₹ थे। पोती के उपहार के लिए यही पैसे जोड़े होंगे चाची ने। मैंने मन में सोचा। ,”आप यह सब ले जा सकते हैं।” प्रबंधक ने मुझसे कहा। ,” नहीं श्रीमान, मैं तो अगर ले जा पता तो चाची को ही ले जाता लेकिन ऐसा नहीं कर पाया। सामान का क्या करूंगा ?” प्रबंधक हैरान था।,” आप उनके रिश्तेदार हैं ?” उसने प्रश्न किया। ” नहीं भाई, मेरे मोहल्ले में रहती थी चाची। बात चीत तो यहीं पर हुई। एक बार भाई के जन्म दिवस पर हमारी ओर से खाना था वृद्धाश्रम में। तभी चाची को देखा था यहां।” उसने ठंडी सांस ली।,” ओह, तो यह बात है। कितना बुरा किया उनके बेटों ने उनके साथ। मृत्यु की सूचना मिलने पर भी नहीं आए हैं। एक आप हैं , हर हफ्ते माताजी के हाल चाल जानने आते थे।” मैं चाची के यहां आने का कारण जानना चाहता था इसलिए पूछ लिया।,” क्या किया था उनके बेटों ने ?” प्रबंधक के चेहरे पर गुस्से और दुख के मिले जुले भाव थे। उसने बताया,” दोनों ने नौकर से झूठ बुलवाया कि कार दुर्घटना में घायल हो गए हैं। माताजी तुरंत नौकर के साथ उन्हें देखने  गई लेकिन अस्पताल के बदले वृद्धाश्रम पहुंच गई।” मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने अपनी बात जारी रखी।,” एक दिन आए थे दोनों। संपत्ति के कागजों पर दस्तखत लेने। माताजी ने नही किए तो नकली दस्तखत कर लिए।  दोनों बड़े अफसर हैं। नेताओं से जान पहचान है।” मैं ठगा सा उसकी बात सुन रहा था। ,” आश्चर्य तो इस बात का है कि माताजी सब कुछ जानकर भी चुप रही।” मैं हैरान था।,” अच्छा ऐसा ?” उसने आगे बताया।,” जब वृद्धाश्रम छोड़ा उन्हें, तब भी वो जानती थी लेकिन विरोध नहीं किया उन्होंने।”

बातें मेरी सोच से परे जा रही थी इसलिए मैंने प्रबंधक से पूछा ,” आपको क्या बताया था चाची ने ?” इस बार प्रबंधक के चेहरे पर मुस्कान थी।,” बोली, मैं यहां खुश हूं। गलती मेरी परवरिश की ही है। बच्चों को काबिल तो बनाया परंतु संस्कारी नहीं बना पाई।” मैं बहुत ध्यान से सारी बातें सुन रहा था और दिमाग में प्रतिबिंब बन रहे थे। प्रबंधक ने बात जारी रखी।,” यहां आते ही उन्होंने हमारी रसोई संभाल ली थी।  आज आश्रम में सुबह से किसी ने कुछ भी नहीं खाया है। रात भर सब उनके साथ इस कमरे में ही थे।” कहते कहते उसकी आंखें नम हो गई। तभी एक कर्मचारी आया और प्रबंधक के हाथ में एक लिफाफा दिया।,” ये कोर्ट के काग़ज़ हैं सर, माताजी की धोती की तह में रखे हुए थे।” प्रबंधक ने मुझे दिखाए। चाचाजी की वसीयत थी। लिखा था। ,” मैं अपनी पूरी संपत्ति अपनी पत्नि आशा के नाम कर रहा हूं। मेरे दोनों बेटे एक नंबर के स्वार्थी हैं।उसकी मृत्यु के बाद यह संपत्ति उस संस्था के पास चली जायेगी जो उसे आश्रय देगी। मैं जानता हूं मेरे पुत्र उसकी जिम्मेदारी नहीं उठाएंगे।” नीचे  चाचाजी के हस्ताक्षर थे। मां को चाची के बारे में बताया तो बस यही बोली,” छूट गई है, आशा। मर तो उसी दिन गई थी जब बेटों ने झूठ बोलकर वृद्धाश्रम पहुंचा दिया था।” मेरे मुंह से बिना सोचे ही निकल गया।,” मां, वहीं तो उन्होंने जिंदगी जी है। जब तक यहां थी तब तक तो ज़िम्मेदारी निभा रही थी।” बाथरूम में जाकर नहाया तो लगा जैसे मन का सारा मैल आज़ धुल गया है।

— अर्चना त्यागी

अर्चना त्यागी

जन्म स्थान - मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश वर्तमान पता- 51, सरदार क्लब स्कीम, चंद्रा इंपीरियल के पीछे, जोधपुर राजस्थान संपर्क - 9461286131 ई मेल- tyagiarchana31@gmail.com पिता का नाम - श्री विद्यानंद विद्यार्थी माता का नाम श्रीमति रामेश्वरी देवी। पति का नाम - श्री रजनीश कुमार शिक्षा - M.Sc. M.Ed. पुरस्कार - राजस्थान महिला रत्न, वूमेन ऑफ ऑनर अवॉर्ड, साहित्य गौरव, साहित्यश्री, बेस्ट टीचर, बेस्ट कॉर्डिनेटर, बेस्ट मंच संचालक एवम् अन्य साहित्यिक पुरस्कार । विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा, बाल प्रहरी संस्थान अल्मोड़ा द्वारा, अनुराधा प्रकाशन द्वारा, प्राची पब्लिकेशन द्वारा, नवीन कदम साहित्य द्वारा, श्रियम न्यूज़ नेटवर्क , मानस काव्य सुमन, हिंदी साहित्य संग्रह,साहित्य रेखा, मानस कविता समूह तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। प्रकाशित कृति - "सपने में आना मां " (शॉपिजन प्रकाशन) "अनवरत" लघु कथा संकलन (प्राची पब्लिकेशन), "काव्य अमृत", "कथा संचय" तथा "और मानवता जीत गई" (अनुराधा प्रकाशन) प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों जैसे अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक हरिभूमि,प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून, संगिनी मासिक पत्रिका,उत्तरांचल दीप पत्रिका, सेतू मासिक पत्रिका, ग्लोबल हेराल्ड, दैनिक नवज्योति , दैनिक लोकोत्तर, इंदौर समाचार,उत्तरांचल दीप पत्रिका, दैनिक निर्दलीय, टाबर टोली, साप्ताहिक अकोदिया सम्राट, दैनिक संपर्क क्रांति, दैनिक युग जागरण, दैनिक घटती घटना, दैनिक प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, निर्झर टाइम्स, दिन प्रतिदिन, सबूरी टाइम्स, दैनिक निर्दलीय, जय विजय पत्रिका, बच्चों का देश, साहित्य सुषमा, मानवी पत्रिका, जयदीप पत्रिका, नव किरण मासिक पत्रिका, प दैनिक दिशेरा,कोल फील्ड मिरर, दैनिक आज, दैनिक किरण दूत,, संडे रिपोर्टर, माही संदेश पत्रिका, संगम सवेरा, आदि पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। "दिल्ली प्रेस" की विभिन्न पत्रिकाओं के लिए भी लेखन जारी है। रुचियां - पठन पाठन, लेखन, एवम् सभी प्रकार के रचनात्मक कार्य। संप्रति - रसायन विज्ञान व्याख्याता एवम् कैरियर परामर्शदाता।

One thought on “परवरिश

Comments are closed.