लघुकथा

सहेज ली यादें

“सुनो मीरा,स्टोर का बाकी सामान तो स्टोर की सफाई करने के बाद वापिस रख देना, लेकिन ये कम्बलों वाले बैग अभी बाहर ही रहने देना,इनको एक एक करके धूप लगवा कर ही वापिस अंदर रखेंगे।”
“जी भाभी” कहते हुए उसकी हेल्पर मीरा ने सभी कम्बल लॉबी में पडी मेज पर रख दिए।
इधर कुछ दिनों से  जबरदस्त ठंड के साथ बीच बीच मे बारिश भी हो रही थी तो दो दिन पहले अनिता ने स्टोर से कुछ सामान निकालते हुए देखा कि वहां सीलन सी आई हुई है तो सोचा एक बार अच्छे से सफाई करा देती हूं।
सारा सामान रखवा के उसने मीरा को घर भेज दिया और शाम को आने को बोला। सोचा अब थोड़ी देर सुस्ता लेती हूं जरा पीठ भी सीधी हो जाएगी।सुबह से लेकर एक के ऊपर एक काम करते करते तीन बजने तक तो थकावट से बुरा हाल हो जाता है।ये सब सोचते सोचते बाहर की कुंडी लगा के अपने कमरे की तरफ जा रही थी कि उसकी नज़र उन कम्बलों पर पड़ गयी।
अकेले ही खुद से बात करने लगी,”अब एक काम और बढ़ गया मेरे लिए..क्या क्या करूँ,अब इनको तो कल अगर धूप निकलेगी, तभी खोलूंगी।
सोचते सोचते कमरे के दरवाजे तक जा कर फिर पीछे मुड़ कर देखा।मन नही माना।आ गयी वापिस लॉबी में।चलो एक बार देख लेती हूं कौन कौन से कम्बल है..बस जरा नजर मार लेती हूं फिर लेट जाऊंगी। सोचते हुए बैठ गयी वहीं पड़ी एक कुर्सी पर। सबसे ऊपर ही दिखा उसको गाढ़े पीले रंग का ये कम्बल जिसके ऊपर भूरे रंग के बड़े बड़े फूल थे।पापा जी कितने प्यार से लाये थे दीपावली पे।जब पापा मम्मी के साथ दीवाली देने आए तो उसे आज भी याद है सोफे पर उसके साथ ही तो बैठे थे।धीरे से उसके पास आ कर बोले थे,”दामाद जी की पसंद के गुलाब जामुन लाया हूँ और  तुम्हारी पसंद की काजू बर्फी.”.और वो बीस साल पुरानी बातें आज भी आंखों के सामने इस तरह घूम रही हैं जैसे कल की ही बात हो।फिर तो पापा कभी नही आये दीवाली देने..चले गए अपनी अनन्त यात्रा पर।
और अनिता ने उस कम्बल को पापा की आखिरी निशानी के तौर पर सहेज के रख लिया था। आंखें भी उनकी बातों को याद करके बहने लगी ।कम्बल के ऊपर हाथ फिराया,जितना गर्म,उतना ही नरम..बिल्कुल पापा के जैसा।
ये एक और कम्बल ससुर जी की निशानी..गहरे नीले रंग का..ऊपर सफेद धारियां..ससुर जी कितने प्यार से लाये थे।
और फिर कुछ समय बाद वो भी नही रहे तो अनिता ने उस कम्बल को उनकी याद के तौर पर सम्भाल लिया था।
ये एक और कम्बल.. मेरून रंग का..अरे ये तो उसकी शादी में मिला था।उसे आज भी याद है जब उसकी शादी से पहले एक बार पापा का कोई जानकर सिंगापुर से आया था तो पापा ने उससे ये कम्बल खरीदा था।जब घर ले कर आये तो मम्मी ने आते ही बोल दिया था,”अब ये मत सोचना कि इस ठण्डी में यही ओढ़ना है।इसको तो पेटी में रखने लगी हूं। अपनी बेटी शादी लायक हो रही है।उसकी शादी में दूंगी।
और हर जवान होती बेटी की माँ की तरह उसने वो कम्बल बेटी की शादी में देने के लिए पैक करके रख दिया था।
ये एक और कम्बल..कितना सुंदर कलर है ना  गहरा गुलानारी रंग ..बिल्कुल जैसे मखमल हो ..ये तो जेठ जी ने दिया था..और ये तो उन्होने दिवाली पे सब को दिए थे दो साल पहले।दीवाली के दिनों की हल्की हल्की ठंड में अनिता ने काफी दिन वो ही कम्बल इस्तेमाल किया और फिर जब ठंड ज्यादा बढ़ गयी तो उसको पैक कर दिया और रजाई निकाल ली।
 फिर जेठ जी भी कहाँ रहे अगली दीवाली आने से पहले ही वो क्रोना नामक राक्षस के क्रूर हाथों का शिकार बन गए। अब ये कम्बल भी उनकीं यादगार निशानी के तौर पर हमेशां इस घर में रहेगा। आंखों से बहती गंगा यमुना के साथ वो यही सोचती रही कि किस तरह घर के सदस्य जब चले जाते हैं तो उनका वजूद तो लॉबी में लगी फोटो मे ही सिमट जाता है और उनकी यादें ,उनके हाथों से लाये समान घर के कोने कोने में उनको जिंदा रखते हैं।
अनिता सोच रही थी कि उसने तो इन सब चीजों को सहेज कर रखा है जाने वालों की यादों के तौर पर..पर कल को जब वो ही नही रहेगी….तब..!!!!
— रीटा मक्कड़