कविता

मन

मन है हमारा एक बंजारा
नहीँ रहता एक जगह फिरता इधर उधर
कभी फिरता है अकेले तन्हाई में
सुकून भरी मेरी मुस्कानों में
कलम लिए कल्पनाओं की उड़ान में
कभी कहता हकीकत के किस्से
कभी रोने,करुणा ,और चीख में
बहते हुए नयन से आंसू की बूंद में
मन तो समझता नहीं एक जगह रहने को
मन तो एक बंजारा है
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश