लघुकथा

अन्य आय

आंगनबाड़ी की चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी कुसुम ने सुपरवाइजर तरुणा से पूछा “मैडम जी! मिड डे मील में क्या बनाऊं?”
 ” खिचड़ी बना दे ; चावल ज्यादा, दाल कम  और पतली बनाया कर। बस इतनी परोसना कि प्लेट गीली हो जाए मतलब दो चम्मच से ज्यादा नही…पढ़ने के बहाने आ जाते खाने।”
  कुसुम नयी सहायिका मधु के साथ खिचड़ी बनाने एक कमरे में गयी। मधु ने देखा कि चीनी, वनस्पति घी, डबल रोटी , दलिया , गेहूँ , बिस्कुट के पैकेट ,कॉपी-किताबों इत्यादि के ढेर लगे पड़े है।
 कुसुम ने तीन लीटर के कुकर में बारह बच्चों के लिए खिचड़ी चढ़ा दी तथा दो डबल रोटी पर वनस्पति घी की मोटी परत के ऊपर चीनी की मोटी परत चढ़ा कर मधु को दी ,दो स्वयं ने खायी।
 “जिज्जी ! ये तो बड़ी सुआद लागे है।”
” ले और ले ना ” कुसुम बोली ।फिर दोनों ने दो-दो ब्रेड और खाई।
 कुसुम ने थोड़ा दलिया ,दाल, डबल रोटी बिस्कुट के दो पैकेट ,दो कॉपी अपने झोले में रख ली।
  “जिज्जी !जे का करे हो? बालकों के लिए है; अन्याय है जे तो।”
  ” मधु!तूने अभी जो डबलरोटी ढकोसी है वो भी बालकों के लिए थी।  एक महीने बाद सब मैडम जी के घर पहुँच कर बिक जायेगा।”
 “हैय !सच में!”
 “हाँ ! मैं तो तीसरे चौथे दिन झोला ले आती हूँ और थोड़ा – थोड़ा  सब ले जाऊं ;तू भी सीख ले सब।”
 ” सही कह रही हो ; जिज्जी हमारी तनख्वाह कौन सी ज्यादा है मैं भी कल से एक झोला लाऊंगी; जे अन्याय नही अन्यआय है।”
 बाहर बच्चे मिड डे मील के नाम पर प्लेट चाट कर चले गये।
 — दीप्ति सिंह

दीप्ति सिंह

बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)