कविता

कविता

धूप की तपिश से जल रहा है तन।
तुम जो बरसो तो शीतल हो मन।।
सागर भी अब तुम्हारा दे रहा है साथ।
पवन का सहारा ले आओ तुम गगन।।
सागर की जलराशि ने बदला स्वरूप।
नभ पर छा जाओ बनके सावन।।
फ्तझड़ के मौसम में आ जाए बहार।
मुरझाई कलियां खिलकर हो मगन।।
बरसात बनकर जो बरसोगी तुम।
खेत और खलिहान हो जाएं जलमगन।।
— प्रमोद कुमार स्वामी

प्रमोद कुमार स्वामी

करेली (म.प्र.)