सामाजिक

तीन ‘स’ से ज़िंदगी बदल लो

ज़िंदगी के बहुत सारे रंगों में तीन अहम रंग सपने, संघर्ष और सफ़लता है, ये तीन ‘स’ जिसने समझ लिए समझो ज़िंदगी को उसने मुट्ठी में कर लिया।
नहीं मिलती मंज़िल यूँहीं किस्मत के भरोसे, संघर्ष का हाथ थामें सपनों में रंग भर लो मेहनत का, देखो फिर बाँहें फैलाए स्वागत करेगी सफ़लता।
ज़िंदगी से कभी यह मत कहो की तू भागी जा रही है और मैं चल भी नहीं सकता, आहिस्ता चल ज़िंदगी मैं थक जाता हूँ। ये कहिए की बहुत सारे सपने है इन आँखों में कुछ तेरे दिये, कुछ मेरे देखे थोड़ा सा वक्त तो दे पूरे करने के लिए मैं तुझसे भी आगे निकल जाऊँगा।
कुछ लोगों को यह कहते सुना है कि सपने जरूर देखो बस उन्हें पूरे होने की शर्त मत रखो…क्यूँ भै क्यूँ हम ज़िंदगी के आगे सपनें पूरे होने की शर्त न रखें? सपने देखना बुरी बात नहीं देखने ही चाहिए, पर सपनें देखने का अधिकार सिर्फ़ उनको है जो सपने सच करने का दम रखता हो।
आँखों को कभी कोरी सूखी मत रखिए सपनों से हरी-भरी रखिए, एक सपना पूरा होते ही दूसरा तैयार रखिए। आँखें सपने देखेगी तभी तन जूझने के लिए तैयार रहेगा। संघर्ष जीवन का हिस्सा है भागने से काम नहीं चलेगा। महज़ सपने देखने से सफ़लता नहीं मिलती याद रखिए अथाह मेहनत और चाणक्य नीति से हर चुनौतियों का सामना करने वालों की गुलाम होती है सफ़लता।
कुछ लोगों को किस्मत को कोसते हुए भी देखा है। क्या ईश्वर ने कभी किसीके सपने में आकर कहा कि मैं हर इंसान की लकीरों में किस्मत लिखकर भेजता हूँ? नहीं.. हमनें लकीरों को अपनी किस्मत मान लिया है। दर असल दो हाथ देकर ईश्वर ने अपनी तकदीर खुद लिखने का हमें अधिकार दिया है। ईश्वर ने सबको एक समान इंसान बनाकर भेजा है जिनके पास सर में एक दिमाग, दो हाथ, दो पैर और दो आँखें इतने औज़ार है वह इंसान सबसे धनवान होता है, और जिनको इन औजारों का सही उपयोग करना आ गया उसने अपनी तकदीर बना ली, और जिनको उपयोग करना नहीं आया वह लकीरों में अपनी किस्मत ढूँढते रहे।
ज़िंदगी माँ नहीं जो सफ़लता प्यार से परोसेगी, ज़िंदगी गुरु है लाठी हाथ में लेकर खड़ी होती है। ठोकर को हार मत मानों लगने दो चोट और हर ज़ख़्म पर हौसलों का मरहम लगाकर वापस खड़े हो जाओ। संघर्ष से लड़ने का हुनर सीख लो, मेहनत के पाठ पढ़ लो, हर परिस्थिति में खुद को आत्मविश्वास के साथ ज़िंदगी के सामने रखो परिस्थितियों को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर करो। अपनी शख़्सियत को ऐसे गढ़ो की किस्मत को आप पर गुरुर महसूस हो। ज़िंदगी झुकती है जनाब झुकाने वाला चाहिए। टाटा, बिरला, अंबानी, अदानी लकीरों के भरोसे नहीं बना जाता, दिन रात एक करने पड़ते है। बेशक बार-बार हराएगी ज़िंदगी, पर हार कर बैठे न रहो लगातार कोशिश करके जीत को अपनी आदत बना लो। ज़िंदगी को जश्न बनाना है तो युवावस्था को मेहनत की आग में तपाओ, पसीने की खुशबू बुढ़ापा  महकाएगी। जिसने जवानी अमन-चमन में उड़ा दी उसकी पूरी ज़िंदगी जूझने में बितेगी। तो ‘सपने’ भी देखो, ‘संघर्ष’ से न घबराओ और खुद के अंदर ‘सफ़लता’ को पाने का जुनून जगाओ और मंज़िल तक पहुँचने की हर वह कोशिश करो जब तक अपने लक्ष्य तक पहुँचकर परचम न लहरा लो। तीन ‘स’ को समझकर भाग्य बदल लो।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर