कविता

घुटन की पीड़ा

कितना सरल है यह कह देना
कि ऐसी बात नहीं है,
पर इस सहज भाव को स्वीकार करना
बड़ा कठिन होता है,
क्योंकि ऐसा सच पर पर्दा डालने जैसा होता है।
पर दुविधा में दोनों होते हैं
क्योंकि दोनों बेहद करीब होते हैं
दोनों अपनी दुविधा ही नहीं
आंसू और पीड़ा भी छिपाते हैं
एक दूसरे को दुःखी नहीं करना चाहते
फिर दु:आ दे ही जाते हैं,
ये अलग बात है कि आंखों में आसूं लिए
बेबसी से मुस्कराते दिख जाते हैं।
कोई किसी को रुलाना नहीं चाहता
पर इसका उल्टा ही होता,
एक दूसरे को उलझाना नहीं चाहते
हर दर्द अकेले पी लेना चाहते,
बड़े छोटे की बात नहीं
दोनों अपना बड़प्पन दिखाते
एक दूसरे को नीचा नहीं दिखाते।
पर अपनी घुटन, अपने आंसू लाख छिपाते
मगर छिपा नहीं पाते,
छोटा तो अपनी बात आसानी से
भले ही कहकर हल्का हो जाता
पर बड़े की बातें उसके हलक में फंस जाते
अपनी बेबसी का उपहास कराते
क्योंकि वे अपने मन का बोझ मन में लिए
मजबूर होकर फीकी मुस्कान के सिवा
और कुछ करने में असमर्थ पाते।
बस दूसरे की खुशी की दुआ करते
और घुट घुटकर रोते रहते।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921