गीत/नवगीत

जहाँ प्रेम का मरहम लगता

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।
अंधकार की रात बीतती, चिढ़ियाँ फिर से गाती हैं।
इक दूजे का हित चिंतन।
नहीं रहा है कोई अकिंचन।
समर्पण, त्याग और प्रेम ही,
करता संबन्धों का मंचन।
विश्वास घात की चोट एक, सब मटियामेट कर जाती है।
जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।
लोग प्रेम का गाना गाते।
खुद को ही हैं वे भरमाते।
अधिकारों के संघर्ष में ही,
टूट रहे सब रिश्ते नाते।
नर नारी को कोस रहा है, नारी खून कर जाती है।
जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।
प्रेम नाम पर लूट रहे हैं।
लालच में बोल झूठ रहे हैं।
प्रेम जाल से शिकार कर रहे,
अपना कहकर कूट रहे हैं।
शिक्षित शातिर बनीं शिकारी, खुद ही खुद को भरमाती हैं।
जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।
धन हित रिश्ता खोज रही हैं।
नित, संबन्धों को तोड़ रही हैं।
कानूनों के जाल में फंसकर,
नारी नर को छोड़ रही है।
प्रेम का मर्म नहीं तू जाने, बाजार में खुद को सजाती है।
जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)