कविता

टिफ़िन बॉक्स

जब भी जाता हूं ऑफिस
याद आती रहती अक्सर एक चीज
कब बजे दोपहर के डेढ़
 निकालूं अपनी मैं टिफिन
भूख से नहीं तड़पता मैं
बस उन तीन डिब्बों में दिखता
मेरे अपनों का स्नेह
बहन मां भार्या  तैयार करती जब टिफिन
हो जाता हूं भाव विभोर
चाहे ठिठुरन भरी हो ठंड
या फिर झुलसती  गर्मी
पर जब तैयार करती वो  टिफिन
तब मौसम नहीं होता हावी
पुत्र प्रेम, भाई का प्रेम
पति की सेहत होता प्रमुख
कैसे बंध  जाती यह डोर
कैसे कोई देता  इन्हें तोड़
एहसान भी नहीं ज़ताती
बस वो अपना फर्ज निभाती
जब आता हूं लौट कर घर
खुशियां तैर  जाती  उनके चेहरे पर
हाथों से लेती  वह टिफन का डब्बा
खोल कर देखती
कहीं कोई खाना तो नहीं छूटा
जब पाती  वो डब्बा  खाली
चेहरे पर मुस्कान तैर जाती
महसूस करता हूं उनकी भावनाएं
मन ही मन प्रभु की लेता बलाएं
कितना मोहक  यह रिश्ता बनाएं
खुशी से बांछे  मेरी खिल जाए
दूर करें ईश्वर अपशकुन सारे
इन्हें किसी की नजर ना लग जाए
इन्हें किसी की नजर ना लग जाए|
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com