सामाजिक

डिजिटल डिटॉक्स

आजकल सुबह होती हैं मोबाइल में बजते अलार्म से और वहीं पर फोन हाथ में ले कर दिन शुरु होता हैं।दिन में जो भी काम हम करें किंतु ध्यान तो आपने फोन पर ही रहता हैं।फिर लेते हैं हाथ में अखबार और वह भी पूरा पढ़ा भी नहीं जाता और टीवी शुरू हो जाता हैं जहां पूरे विश्व के समाचार देखना और विविध चैनलों पर हम चिपके रहते हैं।और फिर शुरू होता हैं मानसिक दौरा fb का ,जहां बहुत सारे पोस्ट देखना,कुछ में रिमार्क करना तो किसी में लाइक करना या कुछ पोस्ट करना।फिर शायद व्हाट्सएप की बारी आती हैं, जिसमें सुप्रभात,विविध देवी देवताओं के नमन के या प्रार्थना वालें चित्रों से ले कर कुछ सुविचारों के फॉरवर्ड्स के साथ साथ कुछ विडियोज,जिसमें कुछ तो देखें जातें हैं तो कोई फक्त स्क्रॉल कर दिए जाते हैं।फिर बारी आती हैं इंस्टाग्राम की,वहां भी fb  और व्हाट्सएप जैसी ही पोस्ट होती होने के बावजूद वहां भी कुछ समय आराम से निकल जाता हैं ।उपर से अगर आप ट्वीटर पर भी कार्यरत रहते हैं तो बात ही खत्म कुछ ही नहीं बहुत सारा समय कब गुजर जाएगा ये आपको पता ही नहीं चलेगा।ये पंचायत का अड्डा हैं जैसे गावों में लोग चौरों पर बैठ कर पूरे गांव की बातों को बढ़ा चढ़ा कर सब की बातें करते थे।
       वैसे भी आयुर्वेद में सलाह दी जाती हैं कि अगर स्वस्थ रहना हैं तो व्रत उपवास करना चाहिए।वही बात यहां भी उपयुक्त हैं हफ्ते में एक दिन सिर्फ फोन करे या फोन आए तो उसका जवाब दें। न व्हाट्स आप, न fb , न इंस्टाग्राम और न ही ट्वीटर पर जाएं,कुछ भी देखना या पोस्ट नही करने की कसम खा लें।इस अप्रतिम कार्य के लिए गुरुवार यानि की वीरवार उत्तम रहेगा।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।