कविता

आधुनिक दर्द

मत बन समशेर ए हिंद के कलमसाज
सोचो सच्चाई दिखाते हुए तुम कलम कर रहे हो भरोसा ए ईमान यू
जो स्वस्थ है उनका हौंसला क्यों पस्त कर रहे हो
जो गए उनका तो साथ हम क्या देंगे
उनकी अर्थियों को क्यों भुनवा रहे हो
सदा ही मर्यादा रही है जीवन मृत्यु के बीच
क्यों गिरा रहे हो ये दीवार जिंदा खबरों की शमशेर से
जो है  अभी जिंदा है मरीज
उनको ये दिखाकर
क्यों हालातो के भंवर में डाल रहे हो
क्या हिंद के कलमसाजो की
रूह से रेहम खत्म हो गया है
शर्म आती है उनको अपना कहने में
जो हालातो का फायदा उठा कर
अपने झोले भरते है
ए अश्क तुम आंखो में ही रहना
क्योंकि औरो की आंखो के अश्क मर से गए है
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।