बाल कहानी

बालकहानी – खुशखबरी 

            जंगल में गरमी बढ़ जाने के कारण सारे पशु-पक्षी बहुत परेशान हो रहे थे। दूर-दूर तक पानी का कोई साधन नहीं था। धरती सूखी पड़ने लगी थी। यदि वे जंगल से बाहर जाते तो शिकारी उनका शिकार कर लेते; इसका हमेशा भय रहता था। इस वजह से सभी बहुत परेशान हो रहे थे। एक दिन मिन्नी गौरैया को बहुत प्यास लग रही थी। वह सीनू तोते से बोला-“सीनू भैया, चलो न जंगल से बाहर। मुझे बहुत प्यास लगी है। मेरे मम्मी-पापा ने मुझे अकेले बाहर जाने के लिये मना किया हैं कि यहाँ शिकारी आता है; नहीं जाना है।” फिर भी सीनू तोता और मिन्नी गौरैया का मन जंगल से बाहर जाने को हुआ। जंगल के बाहर चले ही गये।

            जंगल में शिकारी झाड़ियों में छिप कर बैठा था। सोच रहा था कि कोई आये तो उसे अपना निशाना बनाऊँ। मौका मिलते ही शिकारी ने मिन्नी गौरेये व सीनू तोते पर हमला कर दिया। दोनों घायल हो गए। देखते ही देखते बेहोश हो गए। शिकारी उन्हें पकड़ पाता, इससे पहले टिन्नू भालू वहाँ गुर्राते हुए आया। शिकारी जैसे-तैसे छुपते-छुपाते वहाँ से भाग गया। मिन्नी गौरेया और सीनू तोते को तड़पते देख टिन्नू भालू ने आवाज लगाई- “कोई है…… अरे कोई है…! जल्दी आओ। दौड़ो…दौड़ो….।” टिन्नू भालू भी स्वयं भूख व प्यास के कारण कमजोरी महसूस कर रहा था। मोंटू हाथी और बिन्नू जिराफ बातें करते हुए जंगल के बाहर ही आ रहे थे।

              तभी उन्हें टिन्नू भालू की आवाज सुनाई दी। पहले तो दोनों घबरा गए। फिर बिन्नू जिराफ बोला – “अरे ! यह तो टिन्नू जी की आवाज है। चलो देखते हैं।” पास आते ही देखा कि मिन्नी गौरैया और सीनू तोता बेहोश पड़े हैं। बिन्नू जिराफ और टिन्नू भालू से मोंटू हाथी ने कहा – “तुम दोनों इन्हें जंगल के अंदर ले जाओ। मैं तुरंत पानी का इन्तजाम करता हूँ।” जैसे-तैसे दोनों मिन्नी गौरैया और सीनू तोता को अंदर ले गए। तभी सारे जानवर वहाँ इकट्ठे हो गए । मिन्नी गौरैया व सीनू तोता के मम्मी-पापा जोर-जोर से रोने लगे- “सीनू बेटा ! गौरेया बेटा ! उठो ना। क्या हुआ है हमारे बच्चों को ?” तभी मोंटू हाथी ने अपने सूँड में पानी भर कर लाया और मिन्नी गौरैया और सीनू तोता के मुँह में डाला । फिर उन्हें जब होश आया तो वे “मम्मी… पापा कहते हुए…” अपने-अपने मम्मी-पापा के सीने से लग गए। सीनू तोता और मिन्नी गौरैया ने सबको आपबीती सुनाई।

               फिर सभी जानवर ने मिलकर एक तरकीब सोची कि रोज-रोज कोई न कोई हमारे जंगल से गायब होता जा रहा है। पानी की तलाश में हरेक को बाहर जाना ही पड़ता है। मगर उनमें से किसी न किसी पशु-पक्षी का आखिरी दिन होता है। इसके संबंध में राजा शेरसिंह से तो बात करनी ही पड़ेगी।” मोंटू हाथी की बात पर सबने हाँ में हाँ मिलायी। सभी एक साथ राजा शेरसिंह के गुफा के बाहर इकट्ठे हो गये।

              राजा शेरसिंह दहाड़ते हुए गुफा से बाहर निकले। देखा- “अरे ! क्या बात है ? यहाँ जंगल के सभी सदस्य एक साथ !” टिन्नू भालू और मोंटू हाथी ने पूरी बात राजा शेर को बतायी। तभी मिन्नी गौरैया और सीनू तोता के माता-पिता ने भी रोते-रोते अपनी बात रखी। फिर शेरसिंह ने कहा – “तो बताओ क्या करना चाहिए कि हमें प्यास लगने पर बाहर नहीं जाना पड़े।” मिन्नी के मम्मी-पापा बोले – ” महाराज ! क्यों न हम जंगल में ही छोटा सा तालाब बना ले ताकि हमें बाहर जाना न पड़े।” राजा शेरसिंह हँसते हुए बोला – “गौरेये ! तुम दोनों तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे तालाब बनाना बहुत ही आसान काम है। इस तरह का काम बड़ी मुश्किल से होता है।” सब शांत हो गए। थोड़ी देर बाद मोंटू हाथी बोला – “क्यों नहीं बना पाएँगे ? अगर हम सभी थोड़ी-थोड़ी मेहनत करके गड्ढे रोज करेंगे तो यह काम हो जाएगा।”

              “हाँ महाराज … हाँ महाराज….! मोंटू दादा बिल्कुल सही कह रहे हैं।” सबने एक ही बात कही।

             दरअसल शेरसिंह थोड़ा आलसी, मतलबी और खड़ूस था। उसे सिर्फ अपने भोजन से ही मतलब रहता था।” शेर गुर्राते हुए बोला- ” सभी शांत हो जाएँ। चलो मैं भी देखता हूँ ; तुम सब कैसे बनाते हो तालाब ? तुम पक्षी तो मेरे चटनी के बराबर भी नहीं हो तालाब क्या बनाओगे ?” कुछ क्षण बाद शेरसिंह सर ऊपर उठाते हुए कहा कि ठीक है, अगर तुम सब मिलकर जंगल में तालाब का निर्माण कर लेते हो तो मैं सभी को एक खुशखबरी सुनाऊँगा। वह तुम सब के लिए एक नई सौगात होगी।”

               दूसरे दिन से सभी जानवरों ने मिलकर जंगल में गड्ढे खोदना प्रारम्भ कर दिया। आखिरकार एक छोटा सा तालाब बन ही गया। सभी ने एक-दूसरे से गले मिलते हुए कहा- “हमारी मेहनत रंग लाई। चलो… चल कर राजा शेरसिंह को बताते हैं।”

               सभी राजा शेरसिंह के पास गये। बोले- ” हे राजन ! तालाब तैयार हो चुका है। आप चल कर देख सकते हैं।” राजा शेरसिंह बोले- “ये क्या मजाक है ? अभी तो सप्ताह भर भी नहीं हुआ है; और कहते हो कि तालाब बन गया।”

              भालू बोला- “महाराज ! आप चलकर देखिए तो सही…… ।”

           राजा शेरसिंह ने जाकर देखा कि सचमुच एक तालाब बन गया था, जिसमें लबालब पानी भरा हुआ था। शेरसिंह हैरानी से सभी को देखते हुए बोले- ” फिर भी मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह तालाब तुम सबने बनाया है।” गौरेया बोली – “महाराज ! अगर मन में आत्मविश्वास, लगन और मेहनत का भाव हो, तो जमीन से क्या, पत्थर से भी पानी निकाला जा सकता है। हमें किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। हम तो क्या, इस काम में चींटियों ने ही सबसे ज्यादा हमारी सहायता की है। हम सभी चींटियों के सदा आभारी रहेंगे।” सभी जानवर और पक्षियों ने चीटिंयों के सामने अपना सिर झुका लिया। नन्हीं चींटियों के आँखों से आँसू बहने लगे। वे बोले कि यह तो हमारा फर्ज है। सबको सबकी मुसीबत में काम आना ही चाहिए। हम अपनों की मदद नहीं करेंगे तो किसकी मदद करेंगे।”

               शेरसिंह सभी की बातें सुनकर शांत हो गये। कुछ देर बाद बोले – “मैं यह घोषणा करता हूँ कि आज से जंगल के बाहर कोई नहीं जाएगा; और मैं तुम सबको एक खुशखबरी सुनाने जा रहा हूँ कि इस जंगल के पशु-पक्षियों का मैं कभी शिकार नहीं करूँगा। हम सभी एक साथ एक परिवार की तरह रहेंगे। जो भी शिकारी जंगल के अंदर आएगा, उसका हम सब डटकर सामना करेंगें।” सभी ने खुश होकर तालियाँ बजाई।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priyadewangan1997@gmail.com