कविता

न्याय अन्याय

न न्याय न अन्याय
सब भूल जाइए,
किसे फ़िक्र है न्याय अन्याय की
सबके अपने चश्मे, अपने स्वार्थ हैं
किसको किसकी पड़ी है।
सब न्याय अन्याय को
सुविधा से तौल रहे हैं
अपने पर पड़ती है तो अन्याय
औरों के हित में हो तो भी अन्याय
अपना हित साध जाय तो ही न्याय है
वरना सब अन्याय है,
न्याय तो धरती पर जैसे है ही नहीं ।
न्याय अन्याय की बात अब बेमानी है
हर किसी का निहित स्वार्थ ही
आज न्याय अन्याय की कहानी है,
क्योंकि हमारी आंखों में शर्म नहीं
बेशर्मी का पानी है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921