धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

कबीर दास जी एक सन्त होते हुए भी समाज सुधारक थे

कबीर दास जी एक सन्त होते हुए भी समाज सुधारक थे।एक सन्त के रूप में इन्होंने ईश्वर,ब्रम्ह,जीव जगत,धर्म आस्था,कर्म कांड पर निर्गुण निराकार उपासक के रूप में अपनी दमदार लेखनी चलायी है।ठीक इसी तरह एक समाज सुधारक के रूप में कबीर दास जी नीति न्याय,आडम्बर,अंधविश्वास,पाखंड पर अपनी कलम चलाते हुए करारा प्रहार भी किया है।
“पाहन पूजै हरि मिलय
तो मैं पूजूँ पहार,
या ये तो चाकी भली
पीस खाये संसार।।”
कबीर दास जी पढ़े लिखे नही थे,पर उनको अंतर्दृष्टि का गम्भीर ज्ञान था।उनको आत्म ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।
तभी तो वो कहते हैं-
“मसी कागद छुयो नही
कलम गही नही हाथ।।”
कबीर दास जी ने ढोंगी,साधुओं के आडंबर पर भी चोट किया है-
“पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ
पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय।।”
इसी प्रकार दूसरे दोहे में कहते हैं-
“माला फेरत जुग गया
मिटा न मन का फेर।
करका मनका डारी के
मनका-मनका फेर।।”
ऐसे महान संत और समाज सुधारक कबीर दास जी के जन्म के सम्बंध में यह उल्लेख है-
चौदह सौ पचपन साल गए,
चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को
पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
घन गरजें दामिनि दमके
बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तलाब में कमल खिले
तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥”
कबीर दास जी का दर्शन समभाव, समदृष्टि
और समाज सुधार पर आधारित था।इन्होंने अपनी रचनाओं को बीजक में संकलित किया है।और बीजक को तीन भागों में बांटा गया जिसमें
साखी,सबद,और रमैनी प्रमुख रूप से मानी जाती है।इन सभी रचनाओं में निर्गुण निराकार ब्रम्ह का उल्लेख किया गया है। जिसमे विशेष बात थी,वह है जीवन दर्शन।जिसमे जीवन की नश्वरता और क्षण भंगुरता पर बात कही गई है।और ईश्वर भजन को सार बताया-

“भक्ति भजन सब सार है,
दूजा दुख अपार।।”
यह संसार सेम्हल फूल की तरह है।जो मात्र और मात्र सुंदर दिखता है।यह सुंदरता छण भंगुर है।जो कुछ समय पश्चात झड़ जाता है।सार कुछ भी नही है।सेम्हल फूल की सुंदरता,अज्ञानता में डालने वाला है।इसके झूट-मुठ के आकर्षण में पढ़कर व्यक्ति को अपने आप को नही भूलना चाहिए।व्यक्ति को ईश्वर भजन ,धर्म,कर्म,न्याय, नीति में चलकर सद्कर्म करते रहना चाहिए।तभी भलाई है।इस सम्बंध में कबीर दास जी ने बहुत सुंदर बात कही-
“कबीर ऐसा यह संसार है,
जैसा सैंबल फूल।
दिन दस के व्यौहार में,
झूठै रंगि न भूल॥”
इस संसार की क्षण भंगुरता पर कबीर दास जी ने सुख-दुख,जीवन-मरण,का दृष्टांत देते हुए व्यक्ति की दशा का बहुत मार्मिक और कारुणिक उद्गार व्यक्त किया है।और कहा कि इस संसार मे कुछ भी सार नही है।कभी सुख तो कभी दुख है।जिस व्यक्ति को कल मंडप की वेदी पर देखा गया।उसी व्यक्ति को आज श्मशान में देखा जा रहा है।अर्थात व्यक्ति की क्या औकात है।कितना अस्तित्व है इस बात को कितनी सहजता से कबीर जी ने कह दिया-
“कबीरा यह जग कुछ नही,
खीन खारा खीन मीठ।
काल्हि जो देखा मण्डपय,
आज मसानय दीठ।।”
इस संसार मे व्यक्ति का एक धूल के बराबर भी अस्त्तित्व नही है।वह धूल से भी नगण्य है।इसके बाद भी वह इतना घमंड और अहंकार करता है जैसे वह अमर हो गया है।जबकि उसे यह पता नही है कि उसके पीछे-पीछे  यमराज काल बनके घुम रहा है।कौन क्या जानता है कब किसकी बारी आ जाए।काल को कोई कभी नही जानता कि वह कब,कहाँ,और कैसे व्यक्ति को पकड़ के ले जाए।इसीलिए कहा गया है-
“जन्म, मरण, विवाह,”
कब किसकी कहाँ आ जाय कोई नही जान
सकता।
कबीर ने भी इस सम्बंध में कितनी अकाट्य बात कही-
“कबीरा गरब न कीजिए
काल गहे कर केस।
ना जाने कित मरिहैं,
क्या घर क्या परदेश।।”
किसी ने जीवन की नशवरता पर सुंदर और गम्भीर बात कही।वो कहते हैं-
यह जीवन
“चार दिन की चांदनी
फिर अंधेरी रात।”
इस संसार मे बड़े-बड़े प्रतापी,योद्धा,शूरवीर,धुरंधर राजा महाराजा आए जैसे-
महान सम्राट अकबर,प्रतापी विक्रमादित्य,महान सम्राट अशोक,महात प्रतापी सिकन्दर,महान प्रतापी रावण,हिरण्य कश्यप,आदि-आदि।
लेकिन सभी को इस दुनिया से देह त्याग करके जाना पड़ा है।यहाँ किसी का अपना कुछ नही चला।
“खाली हाथ आये थे,खाली हाथ चले गए।”
इसीलिए कबीर ने दोहे में कहा-
“पानी केरा बुदबुदा
अस मानस की जात,
देखत ही बुझ जाएगा
ज्यों तारा परभात।।”
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि  भगवान ने इस संसार मे व्यक्ति को जन्म देकर कुछ अच्छे धर्म कर्म पुण्य और सत्कार्य करने के लिए भेजा है।ताकि वह अंत समय मे अपने जीवन को धन्य कर मोक्ष् को प्राप्त कर सके।

— अशोक पटेल  “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578