कविता

प्राण के बाण

1-
झगड़े से घर का घाटा है बात प्राण ने सही कही।
सास बहू की तनातनी में बिल्ली ही पी रही दही।।
2-
कैसे चोरी रुके प्राण दरबान बाँट कर लेते हों।
जहाँ गली के श्वान चोर से साँठ गाँठ कर लेते हों।।
3-
गंगा जी आने वाली हैं कब तक गाने गायेंगे।
आखिर कब तक थूक थूक कर सत्तू साने जायेंगे।।
4-
कैसे ऊँची गोल बनेंगीं, पहली बार सँवारीं हैं।
नाई का क्या दोष तुम्हारी, मूँछें ही लटकारी हैं।।
5-
कहाँ अनुभवी कहाँ अनाड़ी जादू टोना लगता है।
बूढ़ी सोंठ काम कर जाती अदरक बौना लगता है।।
6-
चोंच मारते ऊँचे उड़ते पंखों में खिल जाते हैं।
हंसों के गुण लक्षण कुछ कुछ बगुलों में मिल जाते हैं।।
7-
नाग केंचुआ बन न सकेगा, लाख मार ले कुण्डलियांँ।
बिल्ली नहीं शेर हो सकती, मगर न होंगीं छिपकलियाँ।।
बेशक शकल एक जैसी हो, तो भी  प्राण अलग होंगे,
कदकाठी गुण लक्षण लोहू,चाल ढाल वंशावलियाँ।।
— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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