मुक्तक/दोहा

मुक्तक

कुछ नहीं मिला तो क्यों नहीं मिला,
ग़र कुछ मिला तो वो क्यों नहीं मिला?
इसी जद्दोजहद में सब कुछ चला गया,
कभी यह नहीं मिला तो वह नहीं मिला।
काँटे उगाये राह में, ग़ैरों के वास्ते,
सोचा न था जायेंगें कभी उसी रास्ते।
चुभने लगे पाँव में जो, दर्द बहुत हुआ,
कोसा उन्हें बोये थे काँटे जिनके वास्ते।
कुछ लोग सोचते सदा नकारात्मक सोच को,
हर काम में तलाशते, बस खोट ही खोट को।
उपलब्धियों पर भी उनको कभी ख़ुशी न मिली,
जी न सके सोच कर जो सकारात्मक सोच को।
— अ कीर्ति वर्द्धन