कविता

एक हों

आओ हम सब एक हों
आपस में न
कोई मतभेद हो
रंग,रूप, जाति
भिन्न होने पर भी
विश्व मैत्री का
साकार रूप हो।
हिंसा, द्वैष से दूर रहें हम
भाईचारे का भाव हो
नई सोच ,नए विचार
और शांति का प्रसार हो।
वसुधैव कुटुंबकम् ‘
का नारा हो
हर त्योहार में
साथ हमारा हो
दीवाली, दुर्गा पूजा,
ईद या क्रिसमस
इन सबमें हर एक की
भागीदारी और साथ हो।
सीमाओं पर न लड़े हम
कंधे पर एक
दूजे का हाथ हो
सिर जब भी उठे हमारा
होठों पर गर्व से
देश का नाम हो।
सहनशीलता सबमें हो
सहायता के लिए बढ़ता
सभी का हाथ हो
आंसू न बहे किसी के
आंखों से सबके मन में
एक दूजे के लिए प्यार
और साथ में सम्मान भी हो।
नारी को सम्मान देकर
मानव मात्र में संस्कार हो
विश्व में जब भी उठे स्वर
सबका हो भला ,
यही हमारा ध्येय हो।
— डॉ. जानकी झा

डॉ. जानकी झा

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,कटक-ओडिसा, 94384 77979