नई सहचार
धीरे धीरे टुट रहा है
भाई बन्धुत्व व प्यार
नई दुनियॉ नई है परिभाषा
नया बना यह संसार
बेईमानी की चल पड़ी खेती
ईमानों का टुटा परिवार
अच्छे इन्सान घट गई है अब
नई युग का चल पड़ा सहचार
भूल गये पुरानी रीति
टुट गया जगत का व्यवहार
नई युग की नई फसल से
भरा पूरा पड़ा है संसार
फैशन की बढ़ गई प्रचलन
छुटा अपना संस्कार
अछुत बन गई वो पहनावा
नग्नता का बढ़ा संस्कार
नया परिधान नया वस्त्र है
धोती साड़ी का टुटा करार
वजूद मिटाने चले है धूर्त
वजूद रोता बैठ द्वार
— उदय किशोर साह