कविता

/ बदलें /

परिवेश सबको
एक जैसा नहीं होता
परिवर्तनशील समाज के साथ
व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन,
विचारों की दिशा
समय – समय पर बदलती है
परंपराओं का अनुसरण यथावत
किसी में होता ही नहीं
हर इंसान का अपना अनुभव
विचारों में तबदील हो जाता है
उसके चाल – चलन में वह दर्शाता है
किसी को अपनी पूँछ से ऊँच मानना,
जाति के नाम पर नीच मानना
अपरिपक्व भावजाल है
साधना के बगैर धर्म,
आचरणहीन वचन
सामाजिक असंतुलन का सबब है
जिसके अंदर स्वयं चलने की शक्ति नहीं
परिश्रम का अभाव है
अंध परंपरा को पकड़कर चलता है
दूसरे के साथ धोखा देता है
समाज में भेद – विभेद उत्पन्नकर
अपने स्वार्थ की पुष्टि करता है
समाज का विकास
व्यक्ति की स्वतंत्रता में है
जाति – धर्म, सांप्रदाय से ऊपर उठकर,
जब वह अपने आपको
हर समय देखता है तब
मानवीय धरातल पर आ जाता है
अस्वीकृति की दुर्बलता को पारकर
महामानव बन जाता है

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।