लघुकथा

खूबसूरती

“नैशनल अवॉर्ड बहुत-बहुत मुबारक हो स्वाति. तुम्हारी कामयाबी का समाचार सुनकर मैं सचमुच बहुत खुश हूं.”
“अरे वाह! सरोज बोल रही हो! कितने सालों बाद तुम्हारी आवाज सुन रही हूं. कहां हो आजकल!” फोन पर सखी की आवाज से ही स्वाति इतनी उत्तेजित हो गई थी.
“हूं तो तुम्हारे ही शहर में, पर कभी मिलना नहीं हुआ.” सरोज की आवाज में कुछ बुझावट-सी थी.
“मैं बहुत खुश हूं तो ठीक है, पर मैं सचमुच बहुत खुश हूं का क्या मतलब है?”
“बरसों से तुमसे यह बात कहना चाहती थी, पर कह न सकी.” सरोज कुछ रुआंसी-सी हो गई थी.
“ऐसी क्या बात है?”
“खूबसूरती और प्रतिभा छिपाए नहीं छिपती. तुम तो बाहरी खूबसूरती के साथ भीतरी खूबसूरती और प्रतिभा की मल्लिका भी हो!” कहना चाहती थी सरोज, पर चुप रहकर स्वाति के प्रश्न को टालती-सी लगी.
“चुप क्यों हो गईं सरोज, बोलो न?” स्वाति का स्नेहिल आग्रह था.
“तुम्हें याद होगा, कि सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा होने वाली थी और मैं तुमसे सांख्यिकी पढ़ने आती थी. सांख्यिकी तुम्हें भी खास नहीं आती थी, पर तुम मेरी समस्याएं भी पतिदेव से हल करवाकर इतने अच्छे तरीके से समझाती थीं, कि सांख्यिकी मुझे सरल लगने लगी.”
“इसमें क्या बड़ी बात है? हम एक दूसरे की मदद के लिए तो हरदम तैयार ही रहते हैं.” स्वाति ने उसे सहज करते हुए कहा.
“वो तुम्हारी बात है! तुम्हें तो शायद पता भी नहीं था कि मुझे सांख्यिकी पढ़ाने एक ट्यूटर भी आता था, पर मैंने तुमसे यह बात कभी साझा नहीं की.”
“तो क्या हुआ! मुझे तो घर में ही सहायता मिल जाती थी, कोई परेशानी तो थी नहीं!”
“यही तो बात है न! तुम हर बात को सहजता से लेती हो, इसलिए खुश रहती हो. तुम्हारी तन की खूबसूरती को मन की खूबसूरती चार नहीं हजार चांद लगा देती है. सहज रहने से प्रतिभा भी निखर आती है और हर जगह कामयाबी चरण चूमने लगती है.”
“तुम भी पास तो हो गई थी न!”
“खाक पास हुई, साक्षात्कार में तो फिसड्डी ही रह गई न! आज तक फिसड्डी ही हूं, ऊपर से तुम्हारी बढ़ती कामयाबी से खुश होने के बजाय मन-ही-मन कुढ़ती रही. नुकसान मुझे ही हुआ, मैं ही दुःखी होती रही.”
“ऐसी तो कोई खास बात नहीं हुई!”
“खास कैसे नहीं हुई! साक्षात्कार में तुम प्रथम आई थीं और पिछली नौकरी के सर्टिफिकेट पूरे करने के लिए तुम्हें सरकार की तरफ से तीन दिन का समय भी मिला था, यह कोई कम कामयाबी है! फिर लगन और प्रतिभा के चलते तुमने पढ़ाई भी जारी रखी, तुम्हारा प्रमोशन भी होता गया और अब नैशनल अवार्ड! सच कह रही हूं स्वाति, तुम्हारी इतनी बड़ी कामयाबी का समाचार सुनकर मैं सचमुच बहुत खुश हूं.”
“यह तुम्हारा बड़प्पन है, कि मेरी खबर रखती रहीं और अब बधाई भी दे रही हो.”
“तुम मेरी मदद करती रहीं और मैं तुमसे बात छिपाती रही, नतीजा मेरी असफलता के रूप में मिला. अब तुमसे बात साझा करके मेरा मन हल्का हो गया है.”
“तो एक खुशखबरी और सुनो! आज ही प्रधानाचार्या ने कहा है कि तीन महीने के लिए हिंदी की किसी अच्छी-सी अध्यापिका चाहिए, तुम्हारी कोई जानकार हो तो बता देना. हिंदी में तो तुम्हारा कोई सानी नहीं, आ सकती हो!”
“अरे वाह, नेकी और पूछ-पूछ! तीन महीने तुम्हारा खूबसूरत साथ भी मिल सकेगा.”
उसके लिए स्वाति के मन की खूबसूरती और प्रगाढ़ हो गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244