लघुकथा

दुखती रग

सुबह-सुबह न जाने  रोहित किस बात से  झुंझलाया हुआ था. शालिनी का भी मन अच्छा नहीं था। ‘इस घर में कोई भी चीज जगह पर नहीं मिलती’ रोहित बड़बड़ाया ‘मेरी एक फाईल नहीं मिल रही है शालिनी तुम ने देखी है’? ‘वही रखी होगी अपनी कोई सामान जगह पर नहीं रखते और मुझ पर चिल्लाते हैं’ शालिनी ने झुंझलाकर कहा । ‘सारा दिन क्या करती रहती हो घर पर थोड़ा ध्यान दिया करो’ रोहित गुस्से में बोला । शालिनी को भी थोड़ा गुस्सा आ गया ‘२२ साल से घर ही तो देख रही हूं, आप ने कभी एक रूमाल भी खुद से धोया है कभी किचन में खाना भी बनाया है सभी कुछ टाईम पर मिल जाता है इसलिए खुद को हाथ हिलाने की भी जरुरत नहीं पड़ती है।’
‘तुम कभी मौका ही नहीं देती हो ! कभी मायके जाती ही नहीं हो कि मैं सारे काम खुद से करूं’!  रोहित का इतना कहना था कि शालिनी की आंखों में आंसु आ गए।
शालिनी की मां नहीं थी ! शादी से पहले उसकी मां का देहांत हो गया था। शालिनी के पिता को उससे कोई सरोकार न था। भाई-भाभियोो की कौन पूछे। जब पिता ही पराए हो गए तो भाईयों से क्या गिला ! इन २२साल वो कभी भी अपने मायके नहीं गई़, यहां तक कि उसके बच्चों ने कभी ननिहाल नहीं देखा! इसलिए जब कभी भी मां या मायका का जिक्र आता है शालिनी की आंखें नम हो जाती है।
रोहित को अच्छी तरह शालिनी के दर्द का एहसास है मगर आज गुस्से में वो शालिनी की दुखती रग छेड़ गया।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P