ग़ज़ल
उससे पूछो तो ज़रा उसकी शराफ़त क्या है।
ख़ाक में मिल के जो मिले तो मुहब्बत क्या है।।
होके बदनाम किया उससे वफ़ा मैंने तो।
दिल मेरा तोड़ के पूछे मेरी हालत क्या है।।
ये तो मुमकिन ही नहीं इश्क़ भुला दूं उसका।
पलकें बिछा दूं मुझे ऐसी भी जरूरत क्या है।।
तोहफे में मिले या मिले विरासत में धन।
जो मेरे हाथ न आए ऐसी दौलत क्या है।।
दिल में तस्वीर बसी जब हो फकत राधा की।
याद मीरा करें कान्हा की यूं गफलत क्या है।।
नाम से उसके लिखी मैंने ग़ज़ल रातों को।
आंख बहती ही रही और इबादत क्या है।।
मैं करूं उसकी इबादत बड़ी ही शिद्दत से।
और जलती ही रहूं और कहो चाहत क्या है।।
— प्रीती श्रीवास्तव