कविता

कविता

शहद से मीठे भाव पिघलते जब मन मे ,
आखों से अश्रु बन वो गिरते हैं ।
उठते हैं ये हाथ दुआओ की खातिर,
निश्चय प्रेम इसी को कहतें हैं।।
पूजा के भाव जब अर्पण मन कर दे,
मिलता है सुख ,समर्पण  जीवन कर दे।
आस्तित्व नही रहता अपना खुद का,
निश्चय प्रेम इसी को कहते हैं।।
 घुलती है आखों मे तस्वीर किसी की,
मिलता है सुकून ,एक झलक दिखती ।
बिन डोर बंधे जब खिच जाते हम,
निश्चय प्रेम इसी को कहते है ।।
आशाओं के दीप यादों से रोशन हों,
भावों का एक समुद्र झिलमिल जब हों।
निज प्राण वारने को मन तडपे,
निश्चय प्रेम इसी को कहते हैं।

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525