राजनीति

दिल्ली का तिलिस्म

जी हां दिल्ली की सत्ता को एक मायाजाल ही कहें तो सही होगा। केजरीवाल ने जिस तरह से अपनी दूसरी पारी विजय करी यह आश्चर्य ही हुआ कि दिल्ली की जनता ने अभूतपूर्व बहुमत से केजरीवाल को सत्ता सौंपी। परंतु दिल्ली में उपराज्यपाल के शासन के फेर में भी भाजपा अभी तक अपनी जमीन ढूंढती नजर आ रही है। अपने एक वक्तव्य में केजरीवाल कांग्रेस की भाषा बोलते नजर आए, क्रांतिकारी सावरकर के बारे में अनर्गल बातें कहना दिल्ली के मुख्यमंत्री को अवश्य नुकसान पहुचने वाला सिद्ध होगा। भारत अपने किसी क्रांतिकारी या वीर का अपमान स्वीकार नही करता। आने वाले समय में केजरीवाल को इस मानसिकता का नुकसान अवश्य उठाना पड़ेगा। परन्तु अभी तक दिल्ली में भाजपा को मुख्यमंत्री दावेदार चेहरा नही मिल पाया। इसे क्या समझा जाये ? जिस चाणक्य अमित शाह जी की रणनीति और राजनीतिक कौशल को सारा देश जानता है उनकी रणनीति दिल्ली को लेकर क्यों कारगर सिद्ध नही हुई। बूथ लेवल तक अपने सांसदों को लगाने के बाद भी वार्ड के चुनावों में भाजपा को वह सफलता नही मिली जो मिलना चाहिए थी। क्या दिल्ली की जनता का मन कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों से भर गया है ? या फिर केजरीवाल के बनाया गया मायाजाल जनता को बाहर आने का अवसर ही नही दे रहा। कुछ भी समझें, अभी भाजपा के लिए दिल्ली दूर ही है, उसे जमीन तक अपना नेटवर्क बनाने जनहित कार्य करने वाले कार्यकर्ता खड़े करने और जनता का मन जितने में अभी समय लगेगा। कितना समय यह तो दिल्ली के नेतृत्व पर निर्भर करता है। जब भाजपा के सशक्त चेहरा दिल्ली की जनता को दिखाने में सक्षम होगी, जो दिल्ली की समस्या और समाधानों का अच्छा अध्ययन रखता हो, उनके समाधान के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण रखता हो, और साथ ही जनता के लिए चलने वाली सरकार और शासन को जमीन तक लाने में सक्षम हो तब जाकर जनता अपना मत बदलेगी। क्योंकि हम सिद्धान्तों से चुनाव नही जीत सकते, आपको जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझना होगा, उनके बीच रहकर समाधान ढूंढने होंगे, यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो यह करेगा दिल्ली पर राज उसी का होगा।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश