राजनीति

अखण्ड भारत – एक संकल्प

सबसे पहले हम यह स्वीकार करें कि विभाजन यह स्थापित सत्य नही। दुनिया में कई ऐसी घटनाएं हुई जिसमें विभाजन को अस्वीकार कर राष्ट्र का पुनः एकीकरण किया। सैकड़ों वर्ष पहले यहूदियों को उनके देश इजराइल से विस्थापित कर दिया था। परन्तु यहूदियों की प्रचण्ड इच्छाशक्ति ने इस स्थापित सत्य को बदलकर रख दिया, आज जिस इजराइल को हम देख रहे है यह 1948 में पुनर्गठित हुआ है । 1857 की क्रांति के बाद लगने लगा था कि अब भारत कभी स्वतंत्र नही होगा, किन्तु इस भ्रम को भी देश ने असत्य सिद्ध किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का विभाजन हो गया, इतनी सख्ती और विपरीत परिस्थितियों के होने के बाद भी जर्मनी पुनः अखण्ड बना, आज जर्मनी अपने एकीकृत रूप में है। कुछ वर्ष पहले सोवियत संघ विश्व की सबसे बड़ी शक्तियों में एक था, आज यह छिन्न भिन्न है। 1970 से पहले बांग्लादेश नाम का कोई अस्तित्व नही था परन्तु भारतीय सेना ने अपने साहस व शौर्य से 1971 में पाकिस्तान का विभाजन कर बांग्लादेश को जन्म दिया।
भारत की स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 को एक नया सवेरा लेकर आई। असंख्य क्रांतिकारियों के बलिदान के बाद देश ने स्वतंत्र वायु में स्वांस ली। अब देश गुलाम नही था, हम अपने नियम, कानून, संविधान बनाने के लिए स्वतंत्र थे। परन्तु इस स्वतंत्रता के सुखानुभव में विभाजन के दर्द को भुला नही जा सकता। भारत कई बार विभाजित हुआ। चूंकि भारत अंग्रेजो के अधीन था तो इन विभाजनों को रोका न जा सका। 1939 श्रीलंका, 1937 म्यांमार, 1876 अफगानिस्तान, 1904 नेपाल, 1914 तिब्बत, 1906 भूटान इसी कालखण्ड में विभाजित हुए। इसमें मुख्य विभाजन भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक दिन पहले 1947 में पाकिस्तान का बनना इसे समझने की बहुत अधिक आवश्यकता है। स्वतंत्रता के महत्व को जानने से पहले हमें विभाजन क्यों हुआ उसके कारणों को समझना होगा।
1) नेतृत्व के मन में राष्ट्र व संस्कृति के बारे में भ्रामक धारणा
जैसे अंग्रेजो ने यह भ्रम फैलाने आरंभ किया कि भारत कभी एक राष्ट्र था ही नही, इस झूठ से भारत के पुनः एकीकरण करने के सिद्धांत को कमजोर किया। एकमेव राष्ट्र न मानकर मिलीजुली संस्कृति का देश मान लेना भारतीयों की सबसे बड़ी भूल। क्योंकि जब आप इस सत्य को नकार देते है कि भारत प्राचीन समय से सनातन वीरों की जन्मभूमि रहा। श्री राम से लेकर श्री कृष्ण तक भारत ने धर्म की ध्वजा को थामे रखा। तब तो सनातनियों का राज्य पूरे विश्व पर था, उसके बाद भी सम्राट विक्रमदित्य, चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार व अशोक ने अखण्ड भारत पर राज्य किया, बप्पा रावल ने अफगानिस्तान तक जाकर हिन्दू साम्राज्य को स्थापित किया। उसके बाद सेकड़ो वर्षों तक अफगानिस्तान में पाल वंश शासक रहा। अनेक महात्माओं ने भारत को श्रेष्ठ व एकजुट बनाएं रखने के लिए असँख्य बलिदान किए। अंग्रेजो ने यह भ्रम भी फैलाया की जिस प्रकार मुसलमान और वे बाहर से आये उसी प्रकार आर्य भी बाहर से आये, जिस झूठ को दुर्भाग्य से नेहरू व कुछ नेतृत्व ने स्वीकृति दे दी। इस असत्य के समर्थन ने हिन्दू समाज को आक्रांताओ की श्रेणी में खड़ा कर दिया। जो अखण्ड भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व पर शासन करने वाले थे उन्हें अपनी अल्प बोधता के कारण देश के तत्कालीन नेतृत्व ने नकार दिया, भारत के वैभव, शौर्य, साहस के इतिहास को नकार दिया। यह एक ऐतिहासिक भूल थी जो नेहरू और शीर्ष नेतृत्व ने की, जिसने अंग्रेजो की भ्रम व झूठी कल्पना को बल दिया।
2) 1905 में जिस बंग भंग को भारतीय समाज ने विफल कर दिया और अंग्रेजो को यह निर्णय वापस लेना पड़ा। 1947 में भारत के मजहबी विभाजन को भारतीय समाज इसकी नही रोक पाया क्योंकि भारत का नेतृत्व मुस्लिम तुष्टिकरण से ग्रस्त हो चुका था। मुस्लिम लीग की अनैतिक मांगो को मानते हुए, कांग्रेस ने मुसलमानों का सशर्त समर्थन लेने की भूल की, जबकि राष्ट्र सभी का तो सशर्त समर्थन की आवश्यकता ही नही थी। बल्कि कहना तो यह था कि तुम समर्थन करते हो तो ठीक वरना हम बिना तुम्हारे भी स्वाधीनता लेकर रहेंगे। क्योंकि अंग्रेज द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इतने कमजोर हो चुके थे कि उन्हें भारत छोड़ना ही था, फिर सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज उत्तर पूर्व से अंग्रेजो को घेर रही थी, सेना व पुलिस विद्रोह आरंभ हो चुका था, परिस्थितियां हमारे अनुकूल होने के बाद भी हम देश का विभाजन नही रोक सके। इसके पीछे कमजोर इच्छाशक्ति वाला तत्कालीन नेतृत्व ही जिम्मेदार है।
3) 1946 में मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन के प्रतिरोध में खड़ा न होकर देश के शीर्ष नेतृत्व का मानसिक आत्म समर्पण मजहबी विभाजन के लिए जिम्मेदार। अलग पाकिस्तान की मांग को लेकर मुस्लिम लीग आक्रामक हो गई, उसने पूरे देश में जुलूस, रैली सभाएं करके हिंदुओं के विरुद्ध मुसलमानों को भड़काना शुरू किया, जिहाद का नारा देकर हिंदुओं को मारने के लिए आह्वान किए गए, लड़कर लेंगे पाकिस्तान जैसे नारो के साथ मुस्लिम भीड़ हिन्दू बस्तियों में आगजनी दंगे और हत्याएं करने लगी। कलकत्ता से आरंभ हुआ मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन पूरे देश में फैलने लगा। हिन्दुओ को मारा जाने लगा। कहीं हिन्दू समाज ने प्रतिरोध करने का प्रयास किया तो कांग्रेस के लोग हिन्दू मुस्लिम एकता की दुहाई देकर रोकने पहुच जाते।  मुस्लिम लीग के इस दंगे और हत्याओं के भ्रामक वातावरण ने कांग्रेस व शीर्ष नेतृत्व को और अधिक झुका दिया जो कि पहले ही मुसलमानों को मनाने के लिए सबकुछ करने को तैयार था। अंततः 1930 में रावी नदी के तट पर खाई गई सौगन्ध को भूलकर कांग्रेस विभाजन के लिए तैयार हो गई।
4) हिन्दूओं में सद्गुण विकृति अर्थात उदारता की अतिशयोक्ति मुसलमान वन्दे मातरम नही गाना चाहते इसे प्रतिबंधित कर दो,वे बाबर औरंगजेब को महापुरुष मानते है, मानने दो।  उन्हें मस्जिदों के आगे बेंड बाजा बजाना पसन्द नही, मत बजाओ। उन्हें गौ हत्या करनी है, करने दो। यह मानसिकता के कारण अलगाववाद को बढ़ावा मिला। इसे ही सद्गुण विकृति कहेंगे। क्योंकि जब प्रश्न राष्ट्र का हो संस्कृति का हो तब राष्ट्र के सम्मान व सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा हो तो उदारता और सहिष्णुता के लिए कोई स्थान नही होना चाहिए, जो कठोर निर्णय और प्रतिरोधात्मक क्रियाएं आवश्यक हो करनी चाहिए।
इन्ही सब कारणों के चले देश का मजहबी विभाजन 1947, 14 अगस्त की आधी रात को हुआ। पश्चिमी व पूर्वी 2 पाकिस्तान बनाये गए, आगे चलकर हमने देखा कि पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा जनता पर अत्याचार के विरुद्ध भारतीय सेना ने खड़े होकर शत्रुओ का दमन किया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। आज पाकिस्तान के कई क्षेत्र बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब आदि से भारत में विलय के स्वर उठ रहे है, जनता पाकिस्तानी सेना से त्रस्त है, आर्थिक रुओ से बर्बाद हो चुके पाकिस्तान ने चीन से कर्ज लेकर अपना एक बड़ा भूभाग चीन को सौंप दिया जो कि पाक अधिकृत कश्मीर का अंग है, वहाँ की स्थानीय जनता भारत से आशा भरी दृष्टि से देख रही है, उन्हें अब पाकिस्तान में अपना भविष्य दिखाई नही दे रहा। जन मानस का यही समर्थन भारत को अखण्ड बनाने में सहायक होगा।
अब हमें क्या करना चाहिए ? यह प्रश्न सबके मन में आता है,
सबसे प्रथम को युवाओं में अखण्ड भारत के विचार को पहुँचाना, क्योंकि हम यह जानते है कि विभाजन पूर्ण सत्य नही है, परंतु यह तभी संभव है जब राष्ट्र का समस्त जन मानस संकल्पित भाव से इसके एकीकरण के लिए कार्य करे। युवा भारत के मन में यह संकल्प स्पष्ट होना चाहिए कि भारत शीघ्र ही अखण्ड होगा। यही भारत की नियति है। शक्तिशाली भारत, अखण्ड भारत ही विश्व को शांति व धर्म के मार्ग पर ला सकता है। यहूदियों ने सैकड़ो वर्षो तक अपने संकल्प को जीवित रखकर इजराइल को पुनः एकीकृत किया, हम भी भारत को पुनः अखण्ड करेंगे, भले ही इसमें एक दशक, 5 दशक, या 1 सदी ही क्यों न लगे। हमारा संकल्प हम हर भारतीय के ह्रदय में जाग्रत करके भारत को पुनः अखण्ड बनाएंगे।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश