मुक्तक/दोहा

खुद के भीतर

खुद के भीतर झॉंक सको, तो झॉंको तो,
सभी प्रश्नों के हल भीतर, तुम झांको तो।
कौन है अपना कौन पराया, गणित कहाँ है,
धरती अम्बर सब ही घट भीतर, झॉंको तो।
कोई शब्द कोई वाक्य, कुछ नहीं है,
फैला मौन सर्वत्र, बाक़ी कुछ नहीं है।
तेरा मेरा, इसका उसका, किसका है,
निज भीतर जाकर देखो, कुछ नहीं है।
रिश्ते सारे स्वार्थ गणित से जुड़े हुए हैं,
मोह माया में सभी चंहु ओर घिरे हुए हैं।
कैसी ख़ुशियाँ, किस ख़ातिर शोक करें,
जीवन मृत्यु के चक्र, सभी फँसे हुए हैं।
आया जीव जगत में, जाना निश्चित है,
दुख सुख सब मोहमाया से परिलक्षित हैं।
अध्यात्म आधार, मुक्ति की राह दिखाता,
भटक रहे मानव को, मोक्ष अभिलक्षित है।
— अ कीर्ति वर्द्धन