लघुकथा

उपहार

जमूरा – उस्ताद ! मुझे आज उपहार इनाम चाहिए.
बोल जमूरे ! आज जीवन में पहली बार तूने रोटी के अलावा कुछ मांगने के लिए मुंह खोला है, जरूर दूंगा, मांग.
जमूरा मदारी के पैरों में गिर पड़ा और बोला, उस्ताद ! स्वराज की 75 वीं सालगिरह पर क्या आप मेरे लिए भारत से कुपोषण को उड़नछू करोगे?
मदारी की आँखें छलछला उठी, उसने धरती माता को प्रणाम किया, माटी को भाल पर लगाया और अपने इष्ट देवता से प्रार्थना की और बिना उत्तर दिए ही उसने सात्विक आक्रोश के साथ, हवा में हाथ लहराया और फिर मुट्ठी खोल दी, उसमें से एक क्षीणकाय पक्षी निकला, जो तेजी से बड़ा होता गया, पूरा आकाश उसके पीछे छिप गया और कुछ ही मिनटों में वह पक्षी बादलों के पार अदृश्य हो गया.
फिर मदारी बोला ! जमूरे, जल्दी ही वो दिन आएगा, जब कुपोषण भारत से इसी पक्षी की तरह हमेशा के लिए गायब हो जाएगा.