कविता

कविता – भावनाएं आहत करने की लड़ाई मार गई

भावनाएं आहत करने की लड़ाई मार गई।
पार्टी में फूट की लड़ाई मार गई।।
बाढ़ की परेशानी मार गई।
प्रवक्ता के बयानों से दंगाई मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
कोरोना महामारी छूट्टी रूसयूक्रेन लड़ाई मार गई।
अब देखो तो बेरोजगारी की भयानकता मार गई।।
तीसरे विश्वयुद्ध उन्माद की डराई मार गई।
पेट्रोल डीजल सिलेंडर की रेट बढ़ाई मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
एक हमें रूस-यूक्रेन से लड़ाई मार गई।
दूसरी मंदी में आमदनी मार गई।।
तीसरी खर्चे की बढ़ाई मार गई।
चौथी पाश्चात्य संस्कृति की बढ़ाई मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
47 वर्ष पूर्व के एक गाने की गूंज फिर सुनाई।
फिल्म रोटी कपड़ा और मकान की याद आई।।
जीवन की वह कहानी आज फिर दोहराई।
तू फ़िर क्यों आई? तुझे क्यों मौत न आई।।
हाय!! महंगाई!! महंगाई!! महंगाई!!
गरीब को तो बच्चे की डिजिटल पढ़ाई मार गई।
गरीबों को तो रोटी की कमाई मार गई।।
गर्मी में बिजली पानी बिल की पटाई मार गई।
नौकरी छूट्टी तो बेरोजगारी मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया