राजनीति

महासंकल्प – आओ अब संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों को निभाएं

वर्ष 1947 में भारत आजाद हुआ और हमने 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75 वें अमृत जयंती महोत्सव को मनाते हुए 76 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जिसमें भारत के यशस्वी पीएम ने लाल किले से 83 मिनट के अपने संबोधन में अनेक बातों का उल्लेख किया और अब अगले 25 वर्षों की स्वर्ण महोत्सव जिसमें वर्ष 2047 में आजादी को 100 वर्ष पूर्ण होंगे उनके अनुसार अब उसमें संकल्प और सामर्थ्य को बल देना होगा और इन 25 वर्षों की रूपरेखा का जिक्र किया जो काबिले तारीफ है। हम नागरिकों को अब चाहिए के इसके एक कदम आगे बढ़कर हमें अपने संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों के साथ-साथ सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर केंद्र सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 को लागू किया था जिसमें संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 51 डालकर मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था उसका सुचारू रूप से पालन करना होगा। साथियों उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आपातकाल (1975 -1977) के दौरान ही मूल कर्तव्यों की आवश्यकता पर समिति ने रिपोर्ट दी थी जिसमें 10 कर्तव्य फिर 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 में 11 वें कर्तव्य को जोड़ा गया था इसलिए हमें भारत को अब फिर सोने की चिड़िया बनाने के लिए अपने मौलिक अधिकारों को जिस मजबूती से संवैधानिक तरीके से प्राप्त करने की तर्ज पर अब हमें अपने मौलिक कर्तव्यों को भी निभाने का प्रण, संकल्प करना होगा क्योंकि दशकों से हम देखतें आ रहे हैं कि आपने मौलिक अधिकारों के लिए हम हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा व्यक्तिगत या पीआईएल के हसते खटखटाते हैं जबकि हम अपने मौलिक कर्तव्य को कुछ ना रिस्पांस नहीं देते।
साथियों हम कर्तव्यों के प्रति उतने सजग नहीं रहतें हालांकि यहां कर्तव्यों को गैर न्यायोचित रूप से जोड़ा गया है और अपनी गैर- न्यायोचित छवि के कारण मौलिक कर्तव्यों को ना निभाने पर कोई अर्थदंड या सजा काप्रावधान नहीं है। परंतु अब समय आ गया है कि हम चार कदम आगे बढ़कर स्वतः संज्ञान लेकर मौलिक कर्तव्यों की अस्पष्टता के कारण जो आलोचना हो रही है उसको ना केवल हम संकल्प लेकर अपनाएं बल्कि इसके संवैधानिक ढांचे में शामिल करने की ओर कदम बढ़ाने होंगे याने हम अब अपने मौलिक कर्तव्यों को अनिवार्यता से निभाने का संकल्प करना होगा जिस पर आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्यों की करें तो, भारत में 11 मौलिक कर्तव्यों की सूचीसंविधान का अनुच्छेद प्रावधान इस तरह है।51A (1) संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। (2) उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना, जिन्होंने हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रेरित किया।(3) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।(4) देश की रक्षा करना और जरूरत पड़ने या कहे जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करना। (5) भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीयविविधताओं से परे सद्भाव और समानभाईचारे की भावना को बढ़ावा देना; महिलाओं के सम्मान के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना। (6) हमारी मिली-जुली संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और उसका संरक्षण करना। (7) वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण को महत्व देना, उसकी रक्षा करना और उसमें सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना। (8) वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना का विकास करना। (9) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना। (10)व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक पहुंचे।(11) माता-पिता या अभिभावक का अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करने का कर्तव्य, छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच (86वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया) के मामलों में।
साथियों बात अगर हम कर्तव्यों की अवधारणा की करें तो एक निजी इलेक्ट्रॉनिक साइट के अनुसार, कर्तव्य की अवधारणा ध्यातव्य है कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जहाँ प्राचीन काल से लोकतंत्र की गौरवशाली परंपरा मौजूद थी। प्रख्यात इतिहासकार के. पी. जायसवाल के अनुसार प्राचीन भारत में गणतंत्र की अवधारणा रोमन या ग्रीक गणतंत्र प्रणाली से भी पुरानी है।इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि इसी प्राचीन अवधारणा में भारतीय लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप की कहानी छिपी हुई है।प्राचीन काल से ही भारत में कर्तव्यों के निर्वहन की परंपरा रही है और और व्यक्ति के कर्तव्यों पर ज़ोर दिया जाता रहा है।भगवद्गीता और रामायण भी लोगों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये प्रेरित करती है, जैसाकि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति को फल की अपेक्षा के बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन करनाचाहिये। गांधी जी का विचार था कि हमारे अधिकारों का सही स्रोत हमारे कर्तव्य होते हैं और यदि हम अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वाह करेंगे तो हमें अधिकार मांगने की आवश्यकता नहीं होगी।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्यों के विशेषताओं की करें तो,(1) मौलिक अधिकार सभी लोगों के लिए होता है, चाहे नागरिक हो या विदेशी परंतु मौलिक कर्तव्य सिर्फ नागरिकों के लिए होता है।(2) यह गैर न्यायोचित है अर्थात संविधान में इसके लिए न्यायालय द्वारा क्रियान्वयन की व्यवस्था नहीं की गई है। (3) यह भारतीय परंपराओं, धर्म, कला एवं पद्धतियों से संबंधित है।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्य की आलोचना की करें तो, वैसे तो मौलिक कर्तव्य प्रत्येक नागरिकों के लिए उनके समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी का एहसास दिलाते है जो उन्हें पूरा करना चाहिए पर ऐसा होता नहीं है, जिस कारण इसकी आलोचना भी होती है जो निम्न है।(1) कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं है- जैसे- मतदान, कर अदायगी, परिवार नियोजन इनके बारे में कुछ नहीं कहा गया है।(2)अस्पष्ट व्याख्या – बहुत से ऐसे कर्तव्य हैं जो आम व्यक्ति के समझ से परे हैं जिससे इसके भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते हैं जैसे- उच्च आदर्श, सामासिक, संस्कृति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि। गैर- न्यायोचित -अपनी गैर- न्यायोचित छवि के कारण मौलिक कर्तव्यों को ना निभाने पर कोई अर्थदंड या सजा का प्रावधान नहीं है। मौलिक अधिकारों के बराबर ना होना- आलोचकों का कहना है कि मौलिक कर्तव्यों को भाग-3 के बाद जोड़ा जाना चाहिए था, ताकि उन्हें मौलिक अधिकारों के बराबर रखा जा सकता।
साथियों बात अगर हम मौलिक अधिकारों के महत्व की करें तो, आलोचनाओं के बावजूद मौलिक कर्तव्य का महत्व कम नहीं होता है।(1) नागरिकों को अपने देश, समाज, नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की जानकारी रखनी चाहिए।(2) राष्ट्र विरोधी कार्यों में मौलिक कर्तव्य एक चेतावनी की तरह कार्य करते हैं।(3) मौलिक कर्तव्य नागरिकों में अनुशासन एवं प्रेरणा बढ़ाती है जिससे नागरिक राष्ट्र के विकास में भागीदार बनते हैं।(4) मौलिक कर्तव्य अदालतों को विधि की संवैधानिक वैधता एवं परीक्षण में सहायता करते हैं।(5) मौलिक कर्तव्य विधि द्वारा लागू किए जाते हैं इनमें किसी के भी पूर्ण न होने पर संसद द्वारा अर्थदंड या सजा का प्रावधान कर सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि महासंकल्प लेना है आओ अब संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों को निभाएं। स्वर्णिम भारत के अगले 25 वर्षों में मौलिक अधिकारों पर दावों के साथ मौलिक कर्तव्यों को गंभीरता से निभाना होगा जो समय की मांग है।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया