कविता

राखी बंधन

 

कच्चे धागों की डोर

मात्र धागा नहीं नेह बंधन है,

जो खून के रिश्तों की

मोहताज नहीं होती,

लगे जो नेह किसी से तो

जाति धर्म की दीवार भी कहाँ ठहरती।

रोली अक्षत टीका दीपक

संग बहनों का नेह बरसता है

भाई कैसा भी हो

बहन के अंतर्मन में ठहरता है।

मां बहन बेटी का सा मिश्रित भाव

उसके नेह में झलकता है,

भाई के माथे पर जब

टीका करती आरती उतारकर

भाई की कलाई पर जब

नेह बंधन बांधती है,

ध्यान से कभी महसूस कीजिए

बहुत भावुक होती है,

आँख की कोरें नम

मगर हँसती मुस्कुराती है,

भाई की खुशी की खातिर

सब कुछ वारने को तैयार रहती

कच्चे धागों में बाँध

जीवन भर रिश्ते निभाती

भाई का संबल होती बहन

भाई के लिए वो सदा

अपने सारे दर्द भूल

उसके सामने आती,

नेह बंधन की आड़ में

पवित्र रिश्तों का बेजोड़ बंधन बन जाती

जीते जी ये फ़र्ज़ निभाती

आखिर! वो बहन जो कहाती।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921