हास्य व्यंग्य

सोने की चिड़िया बनाम सोने के बाज

बचपन में विद्यालय के राष्ट्रीय पर्वों पर ये गीत सुना जाता था  ” जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा… वो भारत देश है मेरा ” तो बड़ा गर्व होता था अपने देश पर और आश्चर्य भी । आश्चर्य इसलिए कि उस समय मेरी बुद्धि व ज्ञान ज्यादा विकास नहीं कर पाया होगा । तब ही तो उस समय मेरी बुद्धि अंदर ही अंदर ये तर्क अवश्य करती थी कि वे सब चिड़िया आखिर कहाँ उड़ गयी अब क्यों ना दिखाई देती है । एक बार तो सोने के असमंजस में एक सुनहरी चिड़िया को पकड़ने का ख़ूब प्रयास भी किया पर मेरे प्रयास निष्फल रहे तब पिताजी के समझाने पर पता चला कि वह चिड़िया सोने जैसे रंग कि है पर सोने की नहीं । भला हो उस चिड़िया की किस्मत का जो पकड़ में नहीं आई अन्यथा उसके साथ क्या क्या होता खुदा जाने ।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ती गई साथ ही पढ़ाई का दर्जा भी, इस प्रकार अब कुछ ऐतिहासिक संदर्भ भी समझ आने लगे थे । साथ ही भारतीय संस्कृति/सभ्यता के कुछ कुछ पहलु पाठ्य पुस्तकों में दर्शित होने लगे ।जिससे भी अपने देश की संस्कृति पर गर्व होने में और भी बढ़ोतरी होने लगी । उच्च शिक्षा में आते-आते राजा-महाराजाओं के व्यक्तिगत जीवन की संपन्नता और आम आदमी के अभावों की जानकारी पुस्तकों के माध्यम से मिलने लगी पर हमारी संस्कृति ने हमें अभावों में भी जिंदा रखा ये उसकी पवित्रता का ही परिणाम था शायद । खैर हजारों सालों पहले राजशाही, विदेशी आक्रमण और बाद में अंग्रेजों ने हमारे देश को खूब लूटा ये सर्वविदित है । फिर भी हम सोने की चिड़िया बाले शिगूफे को नहीं भूले । कभी-कभी सोचता हूँ कि मेरा देश सच में सोने की चिड़िया रहा होगा तब ही तो विभिन्न शिकारी समय समय पर इसका शिकार करते रहें हैं अन्यथा वे क्यों यहाँ आकर अपना व्यर्थ में समय और श्रम लगाते ।
खैर सन- उन्नीस सौ सैंतालीस में अनेक संघर्षों के बाद हमें आजादी मिली तो सोचा कि इन अंग्रेजों के जाने के बाद हमारा देश वो सम्मान पुनः पायेगा जो हम किताबों में, गानों में पढ़ते-सुनते हैं । और ये शुरु में  सच भी होने लगा था क्यों कि परतंत्रता और स्वतंत्रता में जमीन आसमान का अंतर होता है इस सच्चाई की जानकारी ने ही हमें संघर्ष के लिए प्रेरित भी किया था । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसा लगने लगा था कि फिर से सोने की चिड़ियां पैदा होने लगी पर वो अब डाल पर नहीं बैठती थी क्योंकि उनका आकार अब पहले जैसा नहीं था । उन्हें अब हर कोई ना देख सकता ना जान सकता था और धीरे-धीरे कुछ सोने की चिड़ियाएं अपनी विरादरी बढ़ाने में सक्रिय रहने लगी । पर वो डालियां जिन पर कभी सोने की चिड़िया बैठा करती थी उन्हें इंतजार करते करते आजादी के पिचेहत्तर साल बीत गए पर वो सोने की चिड़िया एक बार भी उन पर आकर भूल चूक में भी नहीं बैठी । उनके लिए आम जनता तो ये भी सोच चुकी थी कि सोने की चिड़ियों का वंश शायद बिल्कुल ही नष्ट हो चुका है । इसलिए वो यहाँ आकर फिर बैठेंगी ऐसा शायद संभव नहीं ।
पर आश्चर्य तो तब हुआ पिछले महीनों से ईडी की छापामारी ने तो आम जनता की सोच को ही झूठा साबित कर डाला । अब आजाद भारत में सोने की चिड़ियों की बजाय सोने के बाज पकड़ में आने लगे तो समझ में आया कि ये वो ही बाज हैं जिन्होंने शायद थोड़ी बहुत बची सोने की चिड़ियों का शिकार किया हो । अगर हम उस पुराने गाने को संशोधित कर इस प्रकार गायें तो क्या ठीक नहीं रहेगा- ” जहाँ शहर शहर में सोने के बाज करें बसेरा.. ऐसा भारत देश है मेरा ” जय भारती जय भारती जय भारती । सावधान… सावधान… असली चिड़ियों, बच कर रहना इन सोने के बाजों से … ये अब सोने की चिड़ियों के अलावा सामान्य चिड़ियों का भी शिकार करने लगे हैं ।
— व्यग्र पाण्डे 

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201