कविता

शिक्षक कहलाते हैं

प्यार, दुलार,संस्कार हैं देते,
वो शिक्षक कहलाते हैं ।
अंतः शक्ति जगा देते आकर,
वो शिक्षक कहलाते हैं।

अज्ञानी मन को तपा , तपा ,
सूरज सा वो चमकाते हैं।
प्रकाश दिखाते अंधकार में ,
उत्तम शिक्षक कहलाते हैं।

अनगढ़ पत्थर को प्रयास से,
पत्थर पारस बना देते हैं।
स्वच्छता, साक्षरता बढ़े देश में,
जागरूकता क्रांति ला देते हैं।

पुस्तक और लेखनी की शक्ति,
जग जाहिर करवा देते हैं।
बेटी शिक्षा जन जन शिक्षा,
जग सारा शिक्षा मय बना देते हैं।

न हो समाज में अनपढ़ बच्चे ,
वो पुस्तक हाथ थामा देते हैं ,
देश को पल पल आगे लाते,
वो शिक्षक कहलाते हैं ।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र