मुक्तक/दोहा

समझाना

समझाने से पांडव समझे, बँटवारे पर सन्तोष किया,
कौरव कुल में समझाने का, पूर्ण रूप विरोध किया।
कहाँ समझते पांडव भी कुछ, द्यूत खेलने जा बैठे,
लगा दिया सब कुछ दांव, नहीं कहीं अवरोध किया।
नही समझते बात किसी की, अपनी ज़िद ही ठाने हैं,
इतिहास गवाह है निज कर्मों से, खड़े काल मुहाने हैं।
रावण को भी भाई विभीषण कुम्भकर्ण ने समझाया था,
हश्र देख लो पाकिस्तान का, अब लगने लगा ठिकाने है।
कौन समझता सारी बातें, सब अपनी अपनी गाते हैं,
पूरब में जाने को कह दो, पश्चिम की बात सुनाते हैं।
अपनी ही सन्तानें अब तो, नहीं समझती अपनी बात,
निज हृदय पर ज़ख़्म हैं कितने, ग़ैरों को दिखलाते हैं।
— अ. कीर्तिवर्द्धन