बाल कहानी

कर्म और भाग्य (बाल कहानी )

बहुत समय पहले की बात है, चंदनपुर गाँव में जयवीर नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत दयालू, दानवीर साधू संतो की पूजा करने वाला धर्मरत इंसान था। उसके एक पुत्र था। जिसका नाम प्रज्ञ था। प्रज्ञ बहुत होशियार बच्चा था। पढ़ने में उसका बहुत मन लगता था। वह अपनी कक्षा में अव्वल आता था।
एक दिन की बात है, उस गांव के आश्रम में एक बहुत पहुंचे हुए साधु आये। जयवीर अपने परिवार के साथ आश्रम में उनसे मिलने गया। साधु के चरणों में शीश झुका कर सभी ने प्रणाम किया।
प्रज्ञ ने भी उनको चरण छूकर प्रणाम किया। साधु ने जब प्रज्ञ के ललाट को देखा तो जयवीर से बोल उठे कि तुम्हारा बेटा तो बहुत होनहार है। यह बड़ा होकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा। बहुत ही धन संपत्ति होगी इसके पास। मेरे कथन को सत्य समझो इसका भाग्य प्रबल है। बहुत नाम कमाएगा तुम्हारा बेटा। बहुत बड़ा आदमी बनेगा, तुम्हारे जीवन में फिर कोई अभाव नहीं रहेगा।
जयवीर और उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुए। तीनों आशीर्वाद लेकर अपने घर आ गए।
प्रज्ञ जब से आश्रम से आया था, उसके दिमाग में साधु की वाणी गूँज रही थी कि उसके ललाट पर लिखा है कि वह बहुत बड़ा आदमी बनेगा। हर दिन वह साधु की वाणी को याद करता और अपने काम के प्रति लापरवाह होता जाता। वह कहता कि मेरे भाग्य में बड़ा आदमी बनना लिखा है मुझे काम करके क्या करना। धीरे धीरे वह विद्यालय से छुट्टी लेने लगा, कभी काम करता कभी नहीं करता और दिन भर खेला करता। जब कोई उसे पढ़ने को कहता तो वाह हंस के कह देता की पढ़ कर क्या करेंगे मेरे ललाट पर लिखा हुआ है कि मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा। साधु संत ऐसा ही कहते हैं।
धीरे-धीरे करके उम्र बीतती गयी स्कूल छूट गया वह अनपढ़ रह गया। माँ बाप भी बूढ़े हो गए अब उनसे खेती भी नहीं होती थी। प्रज्ञ की संगति भी बिगड गयी थी और उसका जीवन भिखारी से भी बुरा होगया था। एक दिन उन्हीं साधु का गांव में पुनः आना हुआ।
किसान और उसकी पत्नी साधु के दर्शन के लिए गए और साधू के पैरों पर सिर रख कर रोने लगे। हे गुरुदेव आपके शब्द झूठे कैसे हो गए। जिस लड़के को 20 बरस पहले आशीर्वाद देकर आप ने कहा था कि यह बहुत बड़ा आदमी बनेगा इसको कोई नहीं काट सकता, यह अटल सत्य है। इस बालक के ललाट की रेखाएं ऐसा ही बता रहीं हैं। उसकी दशा आज भिखारियों से भी बुरी है। हर बुरी आदत का शिकार जवानी में ही बूढा हो कर रह गया है। उसका जीवन अभिशाप बन गया है उसी के लिए।
ऐसा नहीं हो सकता मेरी भविष्यवाणी मिथ्या नहीं हो सकती…चलो मुझे उस के पास ले चलो…
जयवीर के टूटे फूटे घर में प्रज्ञ नशे की हालत में अचेत अवस्था में पड़ा था। साधू ने उसके मस्तिष्क को देखा तो उन्हें कोई रेखा नहीं दिखी। वो बोल उठे! इसका यही भाग्य था। और वे आँख बंद कर ध्यान मग्न हो गए।
कुछ देर के बाद उन्होंने आँखे खोली और बोले इसने मेरी बातो को सुनकर कर्म करना छोड़ दिया था। कर्म और भाग्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। भाग्य उन्हीं का साथ देता है जो सदा कर्म में रत रहता है।

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016