कविता

धरती के लाल

न करो !जीवन में आराम ,धरती के लाल!
माटी से जुड़ों ! माटी में ही मिलना है।
सींचो अपने खून पसीने से, लहलाएं खेत , भर जाए खलिहान,
ना करो ! जीवन में आराम, धरती के लाल!
माटी से जुड़ों !माटी में ही मिलना है।
जितना अपने को जलाओगे,
उतना ही सुख पाओगे,
ना करो !जीवन में आराम ,धरती के लाल!
माटी से जुड़ों! माटी में ही मिलना है।
धरती के लाल, लाल बहादुर शास्त्री जी कहना था_
जय जवान ,जय किसान ,भारत की शान
ना करो !जीवन में आराम धरती के लाल!
माटी से जुड़ों! माटी में ही मिलना है।
कोटिश: नमन धरती के लाल!
माटी से जुड़ों!माटी में ही मिलना है।
— चेतनाप्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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