कविता

चलो चलें अब गाँव की ओर

शहर में बढ़ गई अधिक आबादी
वाहनों से होता कर्कश अब शोर
पत्थर के महल में नींद है   रूठी
चलो चलते हैं अब गाँव की ओर

शहर में बढ़ गई अधिक मंहगाई
दुध दही का आकाल बड़ी जोर
पाऊडर से काम कहाँ     चलता
चलो चलते हैं अब गाँव की ओर

शहर में बढ़ गई चीर हरण की घटना
सामाजिकता का टुट गया सब डोर
छेड़खानी अब आम  प्रचलन हो गई
चलो चलते हैं अब गाँव की   ओर

शहर में बढ़ गई बड़ी गुन्डागर्दी
खुलेआम विचरते आवारा ढोर
कानून की कोई खौफ नहीं है
चलो चलते हैं अब गॉव की ओर

शहर में बस गये झगड़ालू पड़ोसी
दिन रात टुटता अमन चैन की पोर
शांति पर आफत की बादल छाई
चलो चलते हैं अब गॉव की ओर

शहर में बढ़ गई अधिक शराबी
मयखाने खुले हैं चारों ही ओर
कैसे बचोगे साकी की नजर से
चलो चलते हैं अब गॉव की ओर

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088