कविता

दीये की बाती

कोई जहाँ ना हो अपना साथी
बन जा खुद की दीये की बाती
कोई किसी का ना होता है
मतलब से ये जग रोता    है
कहने का तो जग है अपना
पर सच में ये बातें है सपना
मतलब का सूरज  आता है
मतलब से ये दिन ढलता है
मत कर गुरुर झ्स धन दौलत की
ऑख मुंदते है सब जगत की
कफन ही साथ शमशान जाता है
चिता में आपके साथ जलता है
नंगा आया है नंगा ही जायेगा
हाथ कमाया कुछ ना पायेगा
नाहक में है ये सीनाजोरी
छोड़ो यारो अब  जोरा जोरी
बेईमानी का राग जो अपनाया
शांति खुद का खुद से लुटाया
हाय गरीबों का जो है लेता
सात पुश्त उनका है    रोता
मत कर जग में तुम मनमानी
अज्ञानी से बन जा तुम ज्ञानी
जो जग में मीठे बोल बोयेगा
जन जन के दिल में हो पायेगा

— उदय  किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088