इस धरा को क्या दिया है?
आगमन-प्रस्थान धरती, पर हमेशा ही चलेगा,
प्रश्न ये है, आपने अपनी तरफ से क्या किया है?
इस धरा ने हम सजीवों, के लिए सब कुछ दिया है।
प्रश्न ये है, हम चरों ने, इस मही को क्या दिया है?
पेड़-पौधों ने दिया फल, जी रहे हैं सांस पाकर,
भानु नित ऊर्जा परोसे, जल दिए हैं मेघ आकर,
जन्म से अवसान तक, हर पग प्रकृति से ही लिया है।
प्रश्न ये है, हम चरों ने, इस मही को क्या दिया है?
जिंदगी की राह में, कितना दिया, कितना मिला?
सोचने से पूर्व ही, करने लगे सब क्यों गिला?
खिल-खिलाती इन हवाओं, ने तुम्हें पग-पग दिया है।
प्रश्न ये है हम चरों ने, इस मही को क्या दिया है?
पाठ समता का पढ़ाएं, नीर,नीरद,तरु,हवाएं,
हर किसी को देखकर, हर पुष्प निश्छल मुस्कराएं,
विष मनुज द्वारा समर्पित, झील-सागर ने पिया है।
प्रश्न ये है, हम चरों ने, इस मही को क्या दिया है?
है हमें अधिकार, पर कर्तव्य का भी बोध हो,
अब धरा कैसे बचेगी, इस दिशा में शोध हो
देख लो व्याकुल हमारी, रत्नगर्भा का हिया है।
प्रश्न ये है हम चरों ने , इस मही को क्या दिया है?
ध्वनि प्रदूषण कर रहे हम, जल प्रदूषण कर रहे हैं,
काटते हैं रोज तरु, यमराज से रण कर रहे हैं,
पाप का भागी है वह भी, आज जो मुंह सी लिया है।
प्रश्न ये है, हम चरों ने, इस मही को क्या दिया है?
— सुरेश मिश्र