गीतिका/ग़ज़ल

ओ! मीत तुझे कुछ कहना है

ओ! मीत मुझे कुछ कहना है, संग तेरे मुझको जीना है
कुछ सपने ख्याब हकीकत को संग तेरे मुझको सीना है
तेरे अधरों पे मुस्कान मनोहर हो, मुझको भी खिल खिल हँसना है
मैं शांत लहर नदियाँ सी हूँ मुझे तुझ सागर में बसना है
कुछ कही अनकही बातों को मुझको बस तुमसे कहना है
जैसे नदियाँ सागर बहती मुझे ओर तुम्हारी बहना है
में हूं अल्हड़ बेवाक प्रिये, मुझे खिलना है मुझे लड़ना है,
फूलों की भाँति तुम्हारे संग मुझको इक दिन झड़ना है
तू दीप बने में बाती बनूँ , फिर संग  तुम्हारे जलना है
जीवन तम का कर नाश खुशी के उजियारे से मिलना है
मेरे गीत गज़ल और मुक्तक मे मुझको बस तुझको कहना है,
बनना है साथी सुख दुःख का, जीवन भर साथ मे रहना है।
संग पाकर तेरा जीवन मे मुझको इस शाम सा ढलना है
ये चाँद नही है चाह मेरी मुझको सूरज सा जलना है
एक हसीं ख्याब मेरे मन का है तेरा दामन खुशियों से भर दूँ
तुझ पर्वत का पाकर आश्रय झरना बनकर के झड़ना है
तेरी दुनिया के इस उपवन में, सुरभी सा मुझको खिलना है
नही और कोई है चाह मेरी अब शुभार्पित बनके रहना है,
— सुरभि उपाध्याय

सुरभि उपाध्याय

पोरसा मुरैना (मध्यप्रदेश)