राजनीति

हिंसा फैलाने वाला #PFI

22 सितम्बर को 16 राज्यों में नेशनल इनवेस्टिगेशन (NIA) ने इस उग्रवादी कट्टर इस्लामिक संगठन के ठिकानो पर छापेमारी की और 100 से ज्यादा सदस्यों को गिरफ्तार किया। इन पर देश में कई जगह हिंसा करने, दंगे भड़काने, उत्तेजित भाषण सहित, संगठन से जुड़ने के लिए उत्तेजित रैलियां सभा करने से लेकर कैंप लगाने तक के आरोप है। केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना में भी बड़े पैमाने पर यह कार्रवाई हुई, जहां यह संगठन निचले लेवल तक पहुचं चुका है। तहसील स्तर तक इसके सदस्य यहां काम करने वाले है। इस कार्यवाही का विरोध भी अब इस्लामिक संगठन व इन्हें पोषित करने वाली राजनीति करने लगी है । NIA की इस निष्पक्ष कार्यवाही को भी वोटबैंक के लालच में प्रमाणिकता की परीक्षा में तोला जा रहा है।
 ऐसा नहीं है कि इस तरह की कार्रवाई पीएफआई पर पहली बार की जा रही है। दिल्ली दंगो के समय भी इस संस्था के विरोध में तथा बेन करने की आवाज उठाई गई थी, जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर थे, दिल्ली में दंगे PFI व इसकी कुछ सहयोगी संस्थाओं के षड्यंत्र से ही हुए । अभी कुछ दिन पूर्व हिजाब मामले में विरोध प्रदर्शन और इसके बहुत पहले देश के कई राज्यों में सीएए और एनआरसी को लेकर हुए प्रदर्शनों को हिंसात्मक बनाने और भीड़ को उग्र करके दंगे भड़काने के षड्यंत्र में भी इस संगठन का नाम सामने आ चुका है। आइये जानते हैं पीएफआई (What is PFI) है क्या ?
पहले पीएफआई और उसके काम के बारे में जानते हैं
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई यह  एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। संगठन का कहना है कि वह पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक की आवाज उठाता है। जबकि यह पूरी तरह से ढकोसला है। PFI भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को लेकर काम कर रहा था, यह इसके कई सदस्यों के कैंप व सभाओं में दिए आपत्तिजनक भाषणों से प्रमाणित होगा। हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की आये दिन कर्नाटक, केरल व दक्षिण भारत के कई राज्यों में होने वाली हत्याओं के पीछे PFI कट्टर मानसिकता ही है यह अब वहां की सरकारें भी जानती है, परन्तु वोटबैंक के लालच में खुलकर स्वीकार नही करती। कई अवसरों पर तो हिन्दू स्वयंसेवक की जघन्य हत्याओं में भी PFI के कट्टर उग्रवादियों की भूमिका प्रमाणित हुई है। संगठन के विकिपीडिया पेज के हिसाब से इसकी स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF, दक्षिण भारत परिषद मंच) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। इसकी शुरुआत केरल के कालीकट से हुई। इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है।
मुस्लिम संगठन होने नाते इनकी ज्यादातर गतिविधियां मदरसों व इसी वर्ग के आसपास होती है। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणी राज्यों में इस तरह के कई संगठन बने। इनमें राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पासारी के भी नाम थे। 2006 में इन तीनों संगठनों का विलय हो जाता है और उसे पीएफआई का नाम दे दिया जाता है। संगठन का कहना है कि वह देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है। पीएफआई का मुख्यालय कोझीकोड में था। लेकिन बाद में उसे देश की राजधानी दिल्ली शाहीनबाग शिफ्ट कर दिया गया। क्या यह भी किसी षड्यंत्र के तहत हुआ यह जानने वाली बात है ? क्योंकि पूरा देश जानता है कि CAA व NRC कानून के विरोध में देशविरोधी आग शाहीनबाग से ही आरंभ हुई।
 पीएफआई पर भड़काऊ नारेबाजी, हत्या से लेकर हिंसा फैलाने तक के आरोप लग चुके हैं। इसी साल मई में संगठन की एक रैली में एक बच्चे से भड़काऊ नारे लगे थे। इस मामले ने काफी तुल पकड़ लिया था। इस मामले में केरल पुलिस ने 20 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था। इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने हस्तक्षेप करते हुए पुलिस से जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। इस मामले केरल हाई कोर्ट ने भी प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी। हालांकि पीएफआई का विवादों से पुराना नाता रहा है। पीएफआई ने केरल के चेलारी में एकता मार्च निकाला था। इस रैली में आरएसएस की ड्रेस पहने युवकों को जंजीर से बंधा हुआ दिखाया था जिस पर काफी विवाद मचा था।
संगठन पर केरल में कई हिंदूवादी संगठनों की नेताओं की हत्या में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा टेरर लिंक, दिल्ली-यूपी में सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए प्रदर्शन को फाइनेंस करने, हिजाब मुद्दे को सुलगाने और हाथरस कांड के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप भी लगता रहा है। 2017 में केरल पुलिस ने लव जिहाद के मामले सौंपे थे, जिसमें पीएफआई की भूमिका सामने आई थी। वहीं 2016 में कर्नाटक में आरएसएस नेता रूद्रेश की हत्या में भी पीएफआई का नाम आया था।
2016 में एनआईए ने केरल के कन्नूर से आतंकी संगठन आईएस से प्रभावित अल जरूल खलीफा ग्रुप का खुलासा किया था। इसे देश के खिलाफ जंग छेड़ने और समुदायों को आपस में लड़ाने के लिए बनाया गया था। बाद में एनआईए को जांच में पता चला कि गिरफ्तार किए गए ज्यादातर सदस्य पीएफआई से थे। इससे पहले 2013 में एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट के अनुसार, PFI/SDPI के एक्टिविस्ट आपराधिक साजिश में शामिल हैं और उन्होंने अपने कैडर को हथियारों और विस्फोटकों की ट्रेनिंग दी थी। ये ट्रेनिंग कन्नूर जिले में लगाए गए आतंकी कैंपों में दी गई। आप समझिए कि बम बनाने और हथियार की ट्रेनिंग कौनसा समुदाय अपने युवाओं को देगा और क्यों ?
2012 में पीएफआई के टेरर लिंक सामने आने के बाद इस संगठन को बैन करने की मांग उठी थी लेकिन तत्कालीन केरल सरकार ने उसका समर्थन किया था। 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई और इसके राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के आतंकी गतिविधियों जैसे बम निर्माण में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी। अभी कुछ माह पहले ही बजरंग दल ने पूरे देश में PFI को बेन करने के लिए ज्ञापन राष्ट्रपति महोदय के नाम दे चुका है, बजरंग दल द्वारा यह कहा गया कि PFI एक कट्टर इस्लामिक संगठन है जो देश में लगातार हिंसा, दंगे व हिन्दू नेताओं की हत्या में लिप्त है इसे तुरंत बेन किया जाए।
भारत के कई राज्य सरकारें भी समय-समय पर पीएफआई को बैन करने की मांग कर चुकी हैं। सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संगठन को पूरी तरह बैन करने की मांग की थी। पिछले साल असम ने भारत सरकार से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। असम सीएम का आरोप था कि वे सीधे तौर पर विध्वंसक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
पीएफआई का नाम काफी समय से लगाातार विवादों में आ रहा है। यूपी में हाथरस कांड के दौरान सीएफआई का नाम सामने आया था। ईडी ने हाथरस दंगों की साजिश में पीएफआई और उसके स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के पांच सदस्यों के खिलाफ लखनऊ की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया था। इसके अलावा संगठन का नाम किसान आंदोलन के समय भी आया था।
एजेंसियों को किसान आंदोलन के दौरान पीएफआई की ओर से हिंसा का इनपुट मिला था। इसके बाद मेरठ समेत कई स्थानों पर पीएफआई के ठिकानों पर छापे मारे गए थे। नुपुर शर्मा विवाद के बाद यूपी में करीब आठ शहरों में जुमे की नमाज के बाद माहौल को गरमाने की कोशिश की गई थी। कानपुर से लेकर प्रयागराज तक हिंसा को भड़काने की कोशिश की गई। इस संगठन से जुड़े लोगों की गिरफ्तारियां हुईं थीं।
वहीं 2017 में विवादास्पद लव जिहाद केस की जांच करते हुए, एनआईए ने दावा किया था कि महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण के दो मामलों के बीच एक पुख्ता सबूत पाया गया था। उस समय एनआईए ने कहा था कि पीएफआई से जुड़े चार लोगों ने केरल निवासी अखिला अशोकन को धर्म परिवर्तन और हादिया नाम रखने के लिए मजबूर किया था। ऐसे हजारों प्रकरण है जो कोर्ट और कानून तक पहुचं ही नही पाते, और अंत में उन लड़कियों की लाश सूटकेस में पाई जाती है।
कर्नाटक के स्कूलों में हुए हिजाब विवाद में भी इस संगठन का नाम सामने आया था। एक स्कूल की यूनिफॉर्म के छोटे से विषय को इसलिए भड़काया गया ताकि हिजाब के बहाने इस्लामिक युवा व युवतियों को भड़काया जा सके। सरकार की ओर से कर्नाटक हाई कोर्ट में महाधिवक्ता (एजी) प्रभुलिंग नवदगी ने दावा किया था कि सीएफआई ने हिजाब के लिए ढोल पीटना और छाती पीटना शुरू कर दिया है। वे किसी के प्रतिनिधि नहीं हैं। यह एक कट्टरपंथी संगठन है जो जबरन आकर हिजाब विवाद पर हंगामा कर रहा है। माना जाता है कि सीएफआई पीएफआई का स्टूडेंट यूनियन है। एसएफआई के साथ संघर्ष के दौरान महाराजा कॉलेज एर्नाकुलम में अभिमन्यु की हत्या में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम सामने आया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संबद्ध संगठन के साथ-साथ आतंकवादी शिविर चलाने, मनी लॉन्ड्रिंग, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देकर दंगा का माहौल बनाने के लिए राशि जुटाई गई थी। ऐसे ही कई प्रकरणों में इस संगठन के तार आतंकी समूहों से जुड़े हुए पाए गए।
बना रखा था PFI के बेन होने पर नए नामों से संगठन की उग्रवादी गतिविधि निरन्तर जारी रखने का प्लान B
1) सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया
2) कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया
3) राष्ट्रीय महिला मोर्चा
4) अखिल भारतीय इमाम परिषद
5) अखिल भारतीय कानूनी परिषद
6) रिहैब इंडिया फाउंडेशन
7) नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमर राइट ऑर्गनाइजेशन
8) सोशल डेमोक्रेटिक ट्रेड यूनियन
9) एचआरडीएफ
ये उन संगठनों के नाम है जिनसे भविष्य में PFI अपने षड्यंत्र को अंजाम देता, परन्तु यह प्लान जांच एजेंसियों के हाथ चढ़ गया ।
PFI पर छापेमारी की कार्रवाई संबंधित अफसरों ने एक न्यूज एजेंसी को बताया है कि टेरर फंडिंग, ट्रेनिंग कैम्प और संगठन में शामिल करने के लिए लोगों को उकसाने वाले पीएफआई के सदस्यों के यहां छापेमारी की जा रही है। पीएफआई के जरिए बिहार के फुलवारी शरीफ में गजवा-ए-हिंद स्थापित करने की साजिश की जा रही थी। जहां NIA ने हाल ही में दबिश दी थी. पीएफआई तेलंगाना के निजामाबाद में भी कराटे ट्रेनिंग के नाम पर हथियार चलाने की ट्रेनिंग दे रहा था, अपने षड्यंत्र में बताए अनुसार यदि शोषित व दलित के न्याय के लिए लड़ना ही है तो हथियार चलाने की ट्रेनिंग का क्या काम ?  वहां भी NIA ने छापा मारा था। इसके अलावा कर्नाटक के हिजाब विवाद और प्रवीण नेत्तरू हत्याकांड में भी PFI का कनेक्शन सामने आया था। यह लिस्ट और लंबी होती यदि इसमें उन प्रकरणों के नाम आते जो कानून की दृष्टि में नही आ सके, परन्तु राज्य सरकारों के समर्थन व तुष्टिकरण की राजनीति के चलते यह उग्रवादी संगठन दक्षिण के कुछ राज्यो में फल फूल रहा था, इसने अपनी जड़ें राजधानी तक फैला ली थी, मदरसों से सीधा संपर्क रखने वाला यह उग्रवादी संगठन देश के लिए खतरनाक सिद्ध होने वाला है, जितना जल्दी हो सके फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में इसके प्रकरणों को लेकर जांच एजेंसियों को पूरी ताकत से इसे व इसके सहयोगी सभी कट्टर संस्थाओं को नष्ट करना चाहिए।
अब तक एनआईए के इस एक्शन के दौरान 22 लोगों को केरल से गिरफ्तार किया गया है, जबकि, महाराष्ट्र और कर्नाटक से 20-20 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनके अलावा तमिलनाडु से 10, असम से 9, उत्तर प्रदेश से 8, आंध्र प्रदेश से 5, मध्य प्रदेश से 4, पुडुचेरी और दिल्ली से 3-3 और राजस्थान से 2 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। एनआईए ने PFI के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमएस सलाम और दिल्ली अध्यक्ष परवेज अहमद को भी गिरफ्तार कर लिया है, गिरफ्तारी और धरपकड़ का ये आंकडा लगाातार बढ़ रहा है। एनआईए की तैयारियों से साफ है कि साजिश करने वाले इस संगठन का कोई सिरा वो छोडना नहीं चाहते। पीएफआई पर जब भी एक्शन होता है वो अपना कोई और चेहरा सामने ले आता है, आतंकी साजिश से इंकार करने लगता है। लेकिन अब जांच एजेंसी के पास उसके खिलाफ इतने सबूत हैं कि उसकी दलीलों से दाल नहीं गलने वाली।
देखने वाली बात यह है कि इस उग्रवादी संगठन पर कार्यवाही यह एक बहुत बड़ा निर्णय है हो सकता है फिर देश विरोधी ताकतें देश की शांति भंग करने का षड्यंत्र करें। इसलिए कुछ माह सजग, सतर्क, सावधान रहने की आवश्यकता है, हर घटना हर चेहरे पर दृष्टि रखने की आवश्यकता है, समाज की सज्जन शक्ति ही इस दुर्जन षड्यंत्र का नाश करने में सहयोगी बन सकती है।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश