कविता

कविता

अब तो अपनी कमर कसना है तुम्हें
मैदां में योद्धा सी डटना है तुम्हें
है घड़ी थोड़ी सी मुश्किल मगर
मुश्किलों में भी हंसते रहना है तुम्हें
तुम ही दुर्गा तुम ही काली तुम ही लक्ष्मीबाई हो
हिमालय की चोटियों तक तुम ही चढ़ कर आई हो
वक्त की धाराओं को बस में करना है तुम्हें
चाल ऐसी चलो जो हर किसी को मात दे
कदम दर कदम तुम्हारा तुम ही तुमको साथ दे
घाव में अपने नमक भरना है तुम्हें
रग रग में लहू तुम्हारे लाल हो
चेहरे पे लाली मस्तक पे भाल हो
थर्रा जाये जमीं ऐसी तुम्हारी चाल हो
अगवाई हमारी अब तो करना है तुम्हें
घर का तिरंगा अब तुम्हारे हाथ है
लहराता रहे मुश्किल नहीं ये बात है
जिन्दगी की दौड़ में रमना है तुम्हें
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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