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गाँधीवाद भारत में पूँजीवाद का संरक्षक

.         गाँधीवाद भारत में पूँजीवाद का संरक्षक

एक मार्क्सवादी की खासियत होती है कि वह किसी व्यक्ति-विशेष को अपना दुश्मन नहीं मानता, किन्तु व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो या हो रहा हो, उसका वर्ग चरित्र का पता लगाकर तर्कसंगत आलोचना करने से कभी पीछे नहीं हटता है। महात्मा गाँधी निश्चित ही एक ईमानदार और अपने विचारों को अपने व्यक्तित्व में उतारने वाले महान व्यक्ति थे। उनके साधु व्यक्तित्व में मुझे कोई ढोंग नजर नहीं आता। इस रूप में मैं उनका आदर करता हूँ और करता रहूँगा। लेकिन जब बात आम लोगों की मुक्ति की है तो मैं जानता हूँ की मैं एक वर्ग विभाजित पूँजीवादी व्यवस्था में रह रहा हूँ जिसमें शोषक (पूँजीपति) और शोषित(मजदूर) दो वर्ग है। अब जब इस नजरिये से गाँधी जी को देखता हूँ तो मैं पाता हूँ कि गाँधी जी जाने या अनजाने पूँजीवाद के पक्ष में थे। पूँजीवाद का पक्षधर होने का मतलब ही है पूँजीपति का हिमायती एवं मजदूर वर्ग विरोधी होना।यहाँ पर मैं गाँधी जी के सिद्धान्त का घोर विरोधी हूँ। मैं अच्छी तरह जानता और समझता हूँ कि गाँधी जी असाधारण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे, जिसका पूरा फायदा उन्हें आगे बढ़ाकर भारतीय पूँजीपति वर्ग ने उठाया था। आजादी आंदोलन के समय में काँग्रेस को पूँजीपतियों से मिलने वाले सहयोग को कई महान क्रांतिकारियों ने यूँ ही गलत नहीं ठहराया था, बल्कि वो लोग ये समझ चुके थे कि गाँधी जी और काँग्रेस दोनों पूंजीपतियों के चंगुल में फँसते जा रहे हैं जिसका प्रतिफल होगा आजादी के बाद भारत में पूँजीवादी व्यवस्था की स्थापना। पूँजीवादी व्यवस्था का अर्थ ही है पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण। आजादी के बाद यहाँ का पूँजीपति पूरे संसाधनों को अपने कब्जे में कर ले, इस स्थिति में नहीं था। अतः कुछ चीजों का राष्ट्रीयकरण कर उसने अपना उदार रूप दिखाया और इस व्यवस्था को मिश्रित व्यवस्था नाम दिया। यह व्यवस्था दरअसल पूँजीवाद ही था जिसने अपना नाम बदल कर अचेत मजदूर वर्ग के आँखों में धूल झोंककर पूंजीपतियों को संरक्षित और और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का काम किया। आज पूँजीपति सारे राष्ट्रीय सम्पतियों को धीरे-धीरे खरीदता जा रहा है और खरीदने के फिराक में है। ये गाँधी की नीतियों की ही दोष है। उस समय भारत में सही साम्यवादी पार्टी की अभाव थी जो इन ढकोसलों का पर्दाफाश करती। नामधारी साम्यवादी पार्टियाँ थी जरूर किन्तु व्यवहार में वह स्वयं भी पूँजीवादी थी। उसने पूँजीवाद को प्रगतिशील मानकर पूँजीवाद विरोधी समाजवादी क्रान्ति से मुँह फेर ली। नतीजा यह हुआ कि जो कार्य उस समय आसानी से हो सकता था आज काफी जटिल बन गया। इतना ही नहीं उन नामधारी साम्यवादी पार्टियों का दोहरा चरित्र ने सभी साम्यवादियों को आम जनता के नजरों में नीचे गिरा दिया। जिसका पूरा फायदा आज पूँजीपति वर्ग उठा रहा है।
हम गाँधी जी को भारतीय पूँजीवाद का संस्थापक मानते हैं, जिस समय आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी उस समय भगत सिंह ने पूँजीवाद के खतरे को कई लेखों और वक्तव्यों के माध्यम से रेखांकित किया था। वह जान गये थे कि भारतीय पूँजीपति वर्ग घात लगाए अवसर के तलाश में बैठा है। इसकी असली मंसूबा आम जन की आजादी(मुक्ति) नहीं,बल्कि राजसत्ता को अपने हाँथ में लेना है जिसके लिये वह गाँधी जी जैसे महान व्यक्तित्व को आदर्श के रूप में दिखाकर मजदूर वर्ग को भ्रमित कर रहा है, ताकि मजदूर वर्ग सचेत होकर अपने हाँथों में राज सत्ता न ले सके और न ही पूँजीवाद विरोधी समाजवादी क्रान्ति कर सके। गाँधी जी के अंदर कोई वर्ग चेतना नहीं थी, अतः वह पूंजीपतियों के हाथों के खिलौना बन गए। नतीजा क्या हुआ, उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में आकर भारत का मजदूर वर्ग क्रान्ति से कोसों दूर हो गया। फिर क्या था, भारतीय पूँजीपति वर्ग इसका भरपूर फायदा उठाया और अपने आप को शोषण के माध्यम से आर्थिक रूप से काफी शक्तिशाली और मजबूत कर लिया, आम किसान, मजदूर की हालत खराब होती गई , मंझोले किसान सर्वहारा बनते चले गए। यह व्यवस्था आजादी के बाद हमें गाँधी जी ने दिलवाया। जिस बात का भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों को डर था , वही हुआ। आज भी गाँधी जी की कपोल कल्पित हिंसा और अहिंसा को समझाकर भारत का पूँजीपति वर्ग राज कर रहा है और मजदूर वर्ग को दिगभ्रमित कर रहा है। मजदूर वर्ग सचेत न होने के वजह से अवैज्ञानिक नजरिया को समझ नहीं पाता है जिसकी वजह से जितना बड़ा संगठन तैयार होना चाहिए अब तक नहीं हो पाया है। आज मजदूर वर्ग को गाँधीवाद से अपना मोह भंग करना अति आवश्यक है।आज आवश्यकता है कि मजदूर वर्ग अपनी वर्ग हित को समझे और हर निर्णय को वैज्ञानिक तरीके से तय करे। जो विचार पूँजीवाद का अंत कर वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापना की रास्ता बताता है उसे तर्क के साथ अपनाये।
गाँधी जी इस लोक की सत्ता से परे ईश्वरीय सत्ता में भी विश्वास करते थे। जबकि आज तक कि विज्ञान ऐसा कुछ भी प्रमाणित नहीं कर सका है। अर्थात उनकी पूरी समझ कल्पनाओं पर आधारित थी और हकीकत से परे था। जिसका पूरा फायदा पूँजीपति वर्ग और घाटा मजदूर वर्ग उठाया। अतः मजदूर वर्ग को गाँधीवाद का विरोध करना ही होगा। गाँधी जी की चिंतन आत्मा और परमात्मा के चक्कर में अवैज्ञानिक तरीके से उलझा हुआ है, इसलिये इससे मोह भंग करते हुए मजदूर वर्ग को वैज्ञानिक समाजवादी विचार अपनाकर क्रान्ति हर हाल में करना होगा। तभी मजदूर वर्ग को शोषण से मुक्ति मिल पायेगा।
याद रहे गाँधीवाद भारत में पूँजीवाद का संरक्षक है, यह मजदूर वर्ग के लिए क्रान्ति के रास्ते का बाधक है।अतः इसे तर्कसंवत परास्त करते हुए वैज्ञानिक विचारों को फैलाना अति आवश्यक है। आज भारत का प्रतिक्रियावादी साम्प्रदायिक ताकत जो गाँधीवाद का भी घोर विरोधी है, गाँधीवाद की पाठ पढ़कर और सुनाकर ही खुद को संरक्षित कर रहा है। अतः मजदूर वर्ग के लिए यह जरूरी है कि वह गाँधीवाद में गाँधी के चेहरे को न देखकर गाँधीवाद को समझे और अपनी क्रान्ति के हित में इसका विरोध करे।
अमरेन्द्र
पटना,बिहार।

अमरेन्द्र कुमार

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