गीत/नवगीत

गीत

जग को जीत करोगे क्या तुम, जब अपनों से हार गये
अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने ही मार गये।

हृदय घात पर घात सहनकर, शिलालेख बन जाता है
जब अपना अपने शब्दों से, नक्काशी कर जाता है
शब्दों का मैं शिल्पकार, पर हरदम खाली वार गये
अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने ही मार गये।1।

पत्थर को भगवान बनाकर, मन की बात बताते लोग
लेकिन मन से मन की वाणी, कभी समझ ना पाते लोग
फँसकर कर के इस चक्रव्यूह में, कई सूरमा हार गये
अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने ही मार गये।2।

गर गठबंधन जनम-जनम का, सच में पावन होता है
अपनों के आघातों से मन, फिर क्यों सावन होता है?
प्यार की राहों पर चलकर भी, दिल की बाजी हार गये
अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने ही मार गये।3।

— शरद सुनेरी