कविता

सत्य की विजय

जब जब हुई धर्म की हानि
प्रभु ने किया संहार अभिमानी
असत्य हर युग में सत्य से हारा
सत्य का रौशन जग में है सितारा
रावण ने सीता को हरण कर लाया
हनुमान ने था तब पता     लगाया
लंका दहन का विभत्स दिखलाया
फिर भी लंकेश को समझ ना आया
राम रावण की संधि पर हुई वार्ता
पर रावण ने ठुकराई वो मूर्ख था
अंगद ने भरी सभा में था ललकारा
रावण अभिमानी को बहुत लताड़ा
विभिषण ने भी लंकेश क़ो नीति बताई
अपमानित हो दशानन ने उन्हें ठुकराई
भार्या मंदोदरी ने बहुत ही थी समझाया
पर मूरख को जरा भी असर ना    आया
युद्घ हो गई सत्य असत्य के बीच में
कई दिन तक लड़े दोनों रणभूमि में
फिर भी रावण पर ना हुई  विजयी
तब विभिषण ने श्रीराम को रहस्य बताई
कहा रावण के नाभि में बसा है अमृत
जब तक ना सुखेगा रहेगा पापी जीवीत
अगले दिन श्रीराम ने अग्नि वाण चलाया
तब दशानन को प्रभु मार कर गिराया
मारा गया पापी अधर्मी दशानन जग में
हर्षित हुए तीनों लोक के गण खुशी से
लंकापति विभिषण को प्रभु ने बनाया
सीता माता को चंगुल से थे छुड़ाया
पुष्पक विमान से सब वापस आये
चारों ओर ख्रशी थी नगर में छाये
हुई सत्यमेव जयते की सत्य वाणी
पापी रावण की हुई खत्म कहानी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088