कविता

कहाँ फर्क पड़ता है

कोई प्यार करे, कोई नफरत करे,
किसी को कहाँ फर्क पड़ता है।
सबको निज सफर पर चलना है,
ख्याल गलती का रखना पड़ता है।
ये संसार तो झमेलों का सागर है,
तैर कर ही निकलना पड़ता है।
इस जहाँ से दूर और भी है कोई ,
हर किसी का हिसाब रखना पड़ता है।
कर्म फल भोगने को तैयार रहना यारों
सभी को मूल्य चुकाना ही पड़ता है।
संघर्षों के बिना जीवन ही कहाँ है,
पथरीले पथ पर चलना ही पड़ता है।
कोई प्यार करे, कोई नफरत करे,
किसी को कहाँ फर्क पड़ता है।
—  शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968