गीतिका
सबके शुभ का संधान करें।
अपने गुरुजन का मान करें।।
सबके सुख की नित चाह बढ़ी,
सुख का जन – जन को दान करें।।
यह सकल विश्व परिवार एक,
बस मानवता का गान करें।।
जग नरक – स्वर्ग है हमसे ही,
क्षण – क्षण को नया विहान करें।।
मत सोचें बुरा किसी का हो,
हो भला सभी का ध्यान करें।।
देने वाला ही पाता है,
है पात्र कौन पहचान करें।।
तन – मन से ‘शुभम्’ सदा करना ,
आजीवन शुभता – पान करें।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’