गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सुनो सौभाग्य की यह बात हमने सुनायी अब
किसी को चाँद है भाया किसी को रात भायी है

बड़ी ही ये अनूठी रात सबको ही लुभाती सुन
गुनगुनाते सितारों की बजे आज शहनाई है

खिली अब रातरानी फैलती ख़ुशबू महकती ज्यों
हवा ही ये उड़ा के अब कहीं से देख लाई है

निकल कर चाँदनी सुन लो बनी दुल्हन चली देखो
अभी ही नाचती क़ायनात की बारात आयी है

सभी खुशियाँ मनाती प्रकृति देखो आज झूमती लगती
अभी झूमे ब्रम्हांड देख आज बहार छायी है

पले सुख ही सदा दिल में रहे वह तो सुहागिन ही
सुनो मेरी विनय आस ये ही लगायी है

किए सोलह अभी शृंगार बनी राधा अभी देखो
कहे कान्हा सुने वो ही घड़ी उसको सुहाई है

सुहागिन सोच रखती व्रत रहे लंबी उम्र पति की
अमरता का लिए वरदान करवा चौथ आयी है

यही व्रत देख लो जो निर्जला होता उसी दिन ही
मगर सोचे नहीं पत्नी कभी आज कठिनाई है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘