गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वही पास आना अभी चाहते हैं
कहा यह मिली अब उन्हें राहतें हैं

चले राह में तो लगे ये कठिन ही
लगी आग ही हर जगह जानते हैं

उड़ाना मज़ाक अब फ़ितरत सभी की
कहो कौन पीर सुन जो बाँटते हैं

न दे कोई साथ किसी कभी भी
जड़ें दूसरों की सभी काटते हैं

चले साथ जो दो कदम भी नहीं सुन
वही हमसफ़र अब हमें मानते हैं

बने बेवफ़ा ठौर कर कहीं भी
ग़मों में पड़े रो रहे जानते हैं

बने आज कोई खुदा ही हमारा
अभी साथ अपने लिए ढूँढ़ते हैं

सुनो फिर हमारा ठिकाना मिले ही
सभी ख्वाहिशें रूबरू चाहते हैं

दिखाते ज़ख़्म हम किसे जो दिये हैं
अभी हम पलों का सुकूं टोकते हैं

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’