कविता

अन्नकूट का पावन पर्व

इंद्र देव का अभिमान मर्दन करने
कृष्ण ने गोवर्धन का मान बढ़ाया
ब्रजवासियों को प्रकोप से  बचाने
पर्वत को  छोटी उंगली से उठाया।

ब्रजभूमि की है यह पावन नगरी
पावन है पर्वत की  यह परिक्रमा
इसकी अनुपम  लीला है सुंदरता
पुलस्त्य को मोहा इसकी अनुपमा।

पुलस्त्य ऋषि  जी ने इसे बसाया
गोवर्धन पर्वत का सम्मान बढ़ाया
धन्य  हुए ब्रज के  हर नर-नारियां
और अपना  जीवन  धन्य बनाया।

अन्नकूट का पावन पर्व यह आया
अभिनन्दन  होगा  नन्दलाला  का
छप्पन  भोग लगेंगे कान्हा जी को
दर्शन  होंगे  कान्हा  के  लीला  का।

धन्य  हुए आज ब्रज के सब वासी
अपना  जीवन  ये सफल बनाएंगे
गिरी,सुर,धेनु, सबकी पूजा करके
आज  कान्हा  की  आशीष  पाएंगे।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578